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Ramyabhoomi

Edition: 2025, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Ramyabhoomi

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असमिया समाज के अद्भुत चितेरे भवेन्द्रनाथ शइकिया का समूचा साहित्य आम असमिया के सुख-दुख का दस्तावेज़ है। उनकी क़िस्सागोई भी ग़ज़ब की है। वह पाठकों को तुरन्त बाँध लेती है। पाठक उनकी कहानियों और उपन्यासों को अपनी आपबीती की तरह पढ़ने लगते हैं। भवेन्द्रनाथ के कथा-संसार की सबसे बड़ी ख़ूबी हैं उनके स्त्री पात्र। वैसे तो वे अपने सभी पात्रों के मनोविज्ञान को बहुत बारीकी से विश्लेषित करते हैं मगर जब बात स्त्री पात्रों की आती है तो वे हमें चकित कर देते हैं।

‘रम्यभूमि’ की कथा के केन्द्र में भी एक स्त्री चरित्र योगमाया है। विपन्न परिवार की लड़की योगमाया के सम्बन्ध घर आने-जाने वाले एक दबंग पुरुष से बन जाते हैं। इस सम्बन्ध को न परिवार स्वीकारता है, न समाज। पुरुष विवाहित है और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो जाती है मगर वह उसके जीवन-यापन के लिए पर्याप्त धन-सम्पत्ति छोड़ जाता है। लेकिन इससे योगमाया के जीवन का संघर्ष कम नहीं हो जाता। वह समाज के द्वारा अस्वीकृत सम्बन्ध के साथ जीती है और उसके बच्चों को भी उस यातना से गुज़रना पड़ता है। योगमाया का त्रासद जीवन पाठक के मन-मस्तिष्क को निरन्तर विचलित रखता है।

‘रम्यभूमि’ का कैनवास बहुत बड़ा है। यह केवल एक परिवार की संघर्ष-गाथा भर नहीं है, अपने समय की कहानी भी कहता है। इस कहानी में एक हरा-भरा जंगल कैसे धीरे-धीरे कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता जाता है, कैसे नए-नए मानवीय सम्बन्ध बनते-बिगड़ते हैं, नई समस्याएँ और चुनौतियाँ आती हैं और एक शहरी समाज आकार लेता जाता है, सब कुछ शामिल है। 

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2025
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 272p
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Bhabendra Nath Saikia

Author: Bhabendra Nath Saikia

भवेन्द्रनाथ शइकिया

सुप्रसिद्ध असमिया साहित्यकार भवेन्द्रनाथ शइकिया का जन्म 20 फरवरी, 1932 को हुआ था। लन्दन विश्वविद्यालय से भौतिक शास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने गुवाहाटी विश्‍वविद्यालय के भौतिक शास्त्र विभाग में बतौर रीडर अध्यापन की शुरुआत की। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘अन्तरीप’, ‘रम्यभूमि’ और ‘आतंकेर शेखोत’ (उपन्यास); ‘प्रहरी’, ‘सेंदूर’, ‘गहाबर’, ‘उपकंठा’, ‘ऐई बंदोरर आबेलि’, ‘बृंदाबन’, ‘तरंग’, ‘संध्या भ्रमण’, ‘गल्प और शिल्प’ (कहानी-संग्रह)। अंग्रेज़ी एवं विभिन्न भारतीय भाषाओं में उनकी रचनाओं के अनुवाद हुए हैं। वे असमिया साप्ताहिक ‘प्रान्तिक’ एवं बच्चों की पत्रिका ‘सफूरा’ के संस्थापक सम्पादक थे। उन्होंने आकाशवाणी के लिए नाटक भी लिखे। बतौर नाटककार मोबाइल थियेटर से जुड़े रहे। आठ फ़ि‍ल्मों का निर्देशन एवं पटकथा लेखन भी किया। अन्तरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में इन फिल्मों के प्रदर्शन हुए हैं।

उन्हें 1976 में ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत और 2001 में ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया गया।  

उनका निधन 13 अगस्त, 2003 को हुआ।

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