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Janjatiya Navjagran

Author: Rahul Singh
Edition: 2025, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Janjatiya Navjagran

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‘जनजातीय नवजागरण’ पुस्तक जनजातीय यानी आदिवासी सन्दर्भों के इतिहास में बिखरे पड़े तथ्यों को जुटाकर जनजातीय नवजागरण का एक नैरेटिव खड़ा करती है; बांग्ला, मराठी और हिन्दी क्षेत्रों के बहुश्रुत नवजागरणों के बरक्स जनजातीय नवजागरण की एक सैद्धान्तिकी निर्मित करती है; और प्रादेशिक नवजागरणों से जनजातीय नवजागरण को अलगाने के सूत्र प्रस्तावित करती है। इसके लिए यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और रानी विक्टोरिया के अधीन औपनिवेशिक भारत में हुए जनजातीय सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों की गहरी पड़ताल करती है और उससे हासिल निष्कर्षों को साझा करती है।

औपनिवेशिक दबावों के विरुद्ध जनजातीय समूह कैसे संगठित होकर प्रतिरोध और परिवर्तन की इबारत लिखते हैं? कम्पनी राज और अंग्रेजी राज के बढ़ते अमानवीय दमन के समान्तर वे कैसे अपनी रणनीति में बदलाव करते चले जाते हैं? ऐसे अनेक प्रश्नों पर विचार करते हुए यह पुस्तक उजागर करती है कि शेष भारत की तुलना में आदिवासी समुदायों के लिए अंग्रेजी राज एक गहन सभ्यतागत संकट बनकर आया था जो उनके लिए अस्तित्वगत संकट का सबब बन गया था। उनका अभूतपूर्व प्रतिरोध इसी संकट की तीव्रतर प्रतिक्रिया था। उसका आधार थी उनकी स्वाधीनता की चेतना जो उनकी सहजीवी-समावेशी जीवनदृष्टि, सदियों पुराने सामुदायिक अनुभवों और परम्पराओं से उपजी थी, न कि किसी कथित आधुनिक विचार अथवा संस्थान के सम्पर्क से। इस ऐतिहासिक परिघटना की पूरी प्रक्रिया को यह पुस्तक उसकी सामाजिकता और ऐतिहासिकता के साथ दर्ज करती है। अंग्रेजी राज ने आदिवासी समुदायों की पूरी विरासत को जिस व्यवस्थित तरीके से ध्वस्त किया उसकी एक बानगी झारखंड के सन्दर्भ में इस पुस्तक में देखी जा सकती है। तथ्यों को विमर्शों के ताने-बाने में यह पुस्तक बहुत सावधानीपूर्वक पिरोती है।

वस्तुतः यह एक विचारोत्तेजक किताब है, जो इतिहास की प्रचलित समझदारी को चुनौती देते हुए विमर्श की एक नई जमीन विकसित करती है। यह अकादमिक और गैर-अकादमिक दोनों समूहों के लिए जरूरी है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 20245
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 272p
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Author: Rahul Singh

राहुल सिंह

राहुल सिंह का जन्म 13 जनवरी, 1981 को राँची, झारखंड के हटिया गाँव में हुआ। स्नातकोत्तर तक की शिक्षा राँची से और पी-एच.डी. जवाहरलाल नेहरू 

राहुल सिंह का जन्म 13 जनवरी, 1981 को राँची, झारखंड के हटिया गाँव में हुआ। स्नातकोत्तर तक की शिक्षा राँची से और पी-एच.डी. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से। उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘विचार और आलोचना’, ‘अन्तर्कथाओं के आईने में उपन्यास’, ‘विश्व सिनेमा का बाईस्कोप’, ‘हिन्दी कहानी : अन्तर्वस्तु का शिल्प’, ‘जनजातीय नवजागरण : औपनिवेशीकरण के विरुद्ध आदिवासी चेतना, प्रतिरोध और परिवर्तन’। साहित्य से इतर सिनेमा और विभिन्न कला रूपों में उनकी दिलचस्पी है और इन विषयों पर लगातार लिखते रहे हैं। डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, राँची द्वारा ‘औपनिवेशिक काल में बांग्ला, मराठी और हिन्दी नवजागरण का जनजातीय सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों के साथ तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर फ़ेलोशिप प्राप्त। ए.एस. महाविद्यालय, देवघर (झारखंड) में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर रहे।

उन्हें ‘सीताराम शास्त्री स्मृति आलोचना पुरस्कार’ (2018), ‘वनमाली युवा कथा आलोचना सम्मान’ (2019), ‘देवीशंकर अवस्थी आलोचना सम्मान’ (2020) से सम्मानित किया जा चुका है।

सम्प्रति : एसोसिएट प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभाग, विश्व भारती, शान्तिनिकेतन, बोलपुर (पश्चिम बंगाल)।

सम्पर्क : alochakrahul@gmail.com

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