भारतीय जीवन में परिवार का वही है, जो किसी भी धर्म या सम्प्रदाय में पूजागृह का होता है। परिवार नामक संस्था ही भारतीय जीवन और समाज-व्यवस्था का मूल है। पिछले सौ सालों में चौतरफ़ा बदलाव के बीच भारतीय समाज में परिवार की संरचना, उसमें अन्तर्निहित तरलता और सम्बन्धों की तीव्रता में क्या और कैसे बदलाव आए हैं, इस संकलन की कहानियों में साफ़-साफ़ दीखता है। संयुक्त परिवार से एकल परिवार और फिर लिव-इन रिलेशनशिप का चलन, इनके भाव-दुष्प्रभाव सबकी पड़ताल इस संकलन की कहानियों में है और अन्त में एक छुपा सन्देश भी कि यहाँ रिश्ते जीवन से बड़े और ज़्यादा मूल्यवान हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2014 |
Edition Year | 2014, Ed. 1st |
Pages | 184p |
Translator | Not Selected |
Editor | Jitendra Shriwastav |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14.5 X 1.5 |