अखिलेश का यह बहुपठित और बहुचर्चित उपन्यास जो पिछले दस वर्षों के अन्तराल में लगभग एक क्लासिक का दर्जा हासिल कर चुका है, हमारे समय की एक बड़ी विडम्बना निर्वासन और विस्थापन का बहुस्तरीय आख्यान है। वह निर्वासन जो भीतर भी घटित हो रहा है, और बाहर भी। इसके साथ यह भारतीय समाज में नए और पुराने की समानान्तर मौजूदगी और उससे भी आगे बढ़कर उनके गठजोड़ के विरोधाभासी अतियथार्थ की कथा भी कहता है।
आधुनिकता के दिग्भ्रमों और पुरातन के प्रति जड़ विश्वास के बीच से रास्ता बनाते हुए हमारा समय जिस दिशा को प्राप्त हो रहा है, और धर्म तथा पूँजी साथ मिलकर इसमें क्या भूमिका निभा रहे हैं, यह उपन्यास उसे समझने का एक विराट रचनात्मक उद्यम है। यह संयोग नहीं कि आज से एक दशक पूर्व इस उपन्यास ने भविष्य को लेकर जिन दुःस्वप्नों के संकेत दिए थे, आज हम उन्हें सामने घटित होते देख रहे हैं।
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से लेकर इक्कीसवीं सदी के पहले दशक तक फैली यह कथा भारतीय समाज के बदलावों को हर सम्भव कोण से देखती है और मनुष्य-सभ्यता के बड़े संकटों को रेखांकित करती है। इसके पात्र जिन्हें हम इस परिवर्तन-ग्रस्त समय के प्रतीकों के रूप में भी पढ़ सकते हैं, न सिर्फ़ इन संकटों की व्याख्या करते हैं, बल्कि उन्हें देखने की एक दृष्टि भी हमें देते हैं।
सम्पूर्णानन्द बृहस्पति, बहुगुणा, रामअंजोर पांडे, सूर्यकान्त और चाचा अपने-अपने निर्वासनों से जूझते हुए यहाँ कथाकार अखिलेश की सूक्ष्म दृष्टि और विधा पर उनकी अभूतपूर्व पकड़ के माध्यम से इतनी सम्पूर्णता में जीवित होते हैं, कि कोई उनकी अनदेखी नहीं कर पाता। हिन्दी के पाठक समुदाय के साथ आलोचकों और समकालीन लेखकों ने भी इसीलिए इसे बार-बार पुनरावलोकन के योग्य समझा।
समाज, समय और मनुष्य के बारे में यह उपन्यास कई ऐसे पर्यवेक्षण और अन्तर्दृष्टियाँ हमें देता है जो विचार के स्तर पर भी हमें सक्रिय करती हैं। डॉ. राजकुमार इस उपन्यास को बिलकुल सही देखते हैं जब वे कहते हैं : ‘साहित्य की शक्ति और सौन्दर्य का बोध कराने वाले इस उपन्यास में इस तरह की अनेक चीज़ें हैं जो वैचारिक अनुशासनों में नहीं दिखेंगी। इसीलिए इसमें समाजवैज्ञानिकों के लिए ऐसा बहुत-कुछ है जो उनके उपलब्ध सच को पुनर्परिभाषित करने की सामर्थ्य रखता है।’
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2014 |
Edition Year | 2024, Ed. 4th |
Pages | 360p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2.5 |