निराला के शब्दों में ‘हास्य लिये एक स्केच’ कहा गया यह उपन्यास अपनी यथार्थवादी विषयवस्तु और प्रगतिशील जीवनदृष्टि के लिए बहुचर्चित है। बिल्लेसुर एक ग़रीब ब्राह्मण है, लेकिन ब्राह्मणों के रूढ़िवाद से पूरी तरह मुक्त। ग़रीबी से उबार के लिए वह शहर जाता है और लौटने पर बकरियाँ पाल लेता है। इसके लिए वह बिरादरी की रुष्टता और प्रायश्चित्त के लिए डाले जा रहे दबाव की परवाह नहीं करता। अपने दम पर शादी भी कर लेता है।
वह जानता है कि ज़ात-पाँत इस समाज में महज़ एक ढकोसला है जो आर्थिक वैषम्य के चलते चल रहा है। यही कारण है कि ‘पैसेवाला’ होते ही बिल्लेसुर का जाति-बहिष्कार समाप्त हो जाता है। संक्षेप में यह उपन्यास बदलते आर्थिक सम्बन्धों में सामन्ती जड़वाद की धूर्तता, पराजय और बेबसी की कहानी है।
Language | Hindi |
---|---|
Format | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 1942 |
Edition Year | 2022, Ed 6th |
Pages | 144p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |