अतीत के दीपक से वर्तमान को प्रकाशित करने का प्रयत्न है ‘श्रीरामायण महान्वेषणम्’।
—नीरज जैन प्रतिष्ठित हिन्दी कवि, सतना (म.प्र.)
“I have no doubt that ‘Sri Ramayana Mahanveshanam’ will remain a milestone not only in the history of Kannada literature or Hindi literature, but in the history of Indian literature also. It is his distinct contribution to Ramayana literature.”
—Indira Goswami Professor, Modern Indian Languages & Literary Studies, Delhi University
‘‘मोइली जी को इतनी बड़ी साहित्यिक परियोजना पर सोचने के लिए, उसे पूरा करने के लिए, और भारतीय परम्परा में उसके उचित सन्निवेश के हेतु प्रयास करने के लिए बधाई देना चाहता हूँ...।
—डॉ. वागीश शुक्ल कवि, दार्शनिक, समालोचक तथा प्रोफ़ेसर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2014 |
Edition Year | 2014, Ed. 1st |
Pages | 1576p |
Translator | Pradhan Gurudutt |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 10 |