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Ragini

Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Ragini

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नेपाली जी में साहित्य की एक प्रखर प्यास है, जिसके बुझने पर साहित्य का कल्याण निर्भर है।

—सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

वह तो मैं हूँ, जो हँसता हूँ/मस्ती है, कुछ गाता हूँ

जो रोते हैं उन्हें मनाकर/अपना गीत सुनाता हूँ

सन् 1935 में पहली बार प्रकाशित नेपाली जी का ‘रागिनी’ काव्य-संग्रह जीवन और संसार के विभिन्न पक्षों को सम्बोधित कविताओं का संकलन है।

यह काव्य का सहज प्रवाह है, जिसे कवि अबाध, हर क्षण न केवल अपने भीतर बहने देता है, बल्कि कविता के अनुशासन में रचकर उसे हमारे पास तक भी पहुँचाता है।

‘वंदगी’ शीर्षक कविता में अपने अन्तस के कृतज्ञता भाव को चर-अचर जगत को समर्पित करते हुए जब वे कहते हैं : वंदे तरु के पीले पत्ते, जिनमें कुछ रस-धार न हो; वैसे यहाँ न हों प्रेमी, तो सच कह दूँ संसार न हो तो कविता जैसे अपनी सर्वांग चिन्ता के साथ हमारे सम्मुख प्रकट हो उठती है।

कवि के अनुसार, साहित्य में आत्मीयता का बड़ा महत्त्व है। यहाँ स्नेह की, संवेदना की सरिता कूल-किनारों को डुबा-डुबाकर बहती है।

कविता के प्रति यह आस्था ही गोपाल सिंह नेपाली को एक विशिष्ट कवि बनाती है जिन्होंने जीवन-भर उसे एक ध्वज की तरह उठाए रखा।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 104p
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20.5 X 13.5 X 1
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Gopal Singh 'Nepali'

Author: Gopal Singh 'Nepali'

गोपाल सिंह ‘नेपाली’

गोपाल सिंह नेपाली का जन्म 11 अगस्त, 1911 को बेतिया (बिहार) में हुआ। प्रवेशिका तक शिक्षा।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘उमंग’ (1934), ‘पंछी’ (1934), ‘रागिनी’ (1935), ‘नीलिमा’ (1939), ‘पंचमी’ (1942), ‘नवीन’ (1944), ‘हिमालय ने पुकारा’ (1963), ‘असंकलित रचनाएँ’ (2007)।

‘सुधा’ (1933), ‘चित्रपट’ (1934), रतलाम टाइम्स’, ‘पुण्यभूमि’ (1935-1937), ‘योगी’ (1937-1939) के सम्पादन से जुड़े रहे। बेतिया राज प्रेस (1940-1944) के व्यवस्थापक भी रहे। फिल्मों के लिए गीत लिखे। फिल्म-निर्माण और निर्देशन क्षेत्र में भी सक्रिय रहे।

उनका निधन 17 अप्रैल, 1963 को हुआ।

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