नेपाली जी की रचनाओं में सहजता और व्यंजना का अद्भुत संयोग देखने को मिलता है।
—नरेन्द्र शर्मा
गोपाल सिंह नेपाली ने राष्ट्रीय भाव और जन-गण के जीवन को जितने निकट से अनुभव किया और उसे कविता में व्यक्त किया, उसी तरह प्रकृति के प्रति भी उनका विशेष प्रेम था।
‘पंछी’ उनका एक खंड-काव्य है जिसमें उन्होंने पल्लववन की वनरानी और वनराजा की प्रेम-कथा कहते हुए जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण पक्षों को रेखांकित किया है।
इस सुदीर्घ काव्य-प्रयास में नेपाली जी की कला के साथ-साथ उनके सूक्ष्म अवलोकन का भी परिचय मिलता है, साथ ही उनके कवित्व की विभिन्न छटाएँ भी इसमें दिखाई देती हैं। कविता के पात्रों के संवादों को उन्होंने जिस लयबद्ध कुशलता से पिरोया है वह देखने लायक है।
इतने में आ पहुँचा राजा, उससे बोला—‘क्या है?’
‘फूटा भाग लिये बैठी हूँ, और दूसरा क्या है?’
‘चला गया था, फिर आता था, इसमें रोना क्या है?’
‘बिना कहे ही प्रणय-गोद से यों गुम होना क्या है?’
इस पुस्तक को देखने के बाद निराला ने इसे ‘अकृत्रिम अनिंद्य ज्योति’ से सम्पन्न काव्य कहा था और यह भी कि ‘मुझे उनकी काव्य-शक्ति, प्रवाह, सौन्दर्यबोध तथा चारु चित्रण एक विशेषता लिये हुए दीख पड़े।’
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 112p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20.5 X 13.5 X 1 |