गोपाल सिंह नेपाली...हिन्दी भारती की वीणा का एक तार...प्रवाह समता, भाषा की सरलता, भावों की रागात्मकता उनकी हर रचना में देखी जा सकती है।
—हरिवंशराय बच्चन
‘पंचमी’ गोपाल सिंह नेपाली की प्रकाशन के क्रम में पाँचवीं कविता-पुस्तक थी। इससे पहले की चार पुस्तकों के मुकाबले वे इसे कतिपय उच्च भावभूमि पर रची अपनी कविताओं का संग्रह मानते थे। संग्रह की पहली ही कविता में वे उठो उठो साहित्य-देवता, तुम्हें पाँचवीं बार पुकारा कहकर अपनी इस पाँचवीं पुस्तक को विशेष भाव से अपने पाठकों को समर्पित करते हैं।
इसी संग्रह में ‘विशाल भारत’ शीर्षक उनकी एक विशिष्ट कविता भी है, जिसके विषय में वे स्वयं कहते हैं कि यह मेरी सहज-सरल राष्ट्रीय गीत लिखने की चेष्टा का परिणाम है। यह देखना रोचक है कि आगे चलकर राष्ट्र-चेतना ही उनके गीतों और कविताओं के मुख्य सरोकारों में से एक रही।
प्रकृति के विभिन्न दृश्यों, चित्रों, बिम्बों और उसके सौन्दर्य को लेकर लिखी गईं ‘पतझड़ का चाँद’, ‘मेघ’, ‘बसंत गीत’ और ‘मेघ उठे सखि, काले-काले’ आदि उनकी कई चर्चित कविताएँ भी इस संकलन में मौजूद हैं।
इनके अलावा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के निधन पर लिखी गई एक अविस्मरणीय कविता भी इस संग्रह की उपलब्धि है : भव्य भारती की वीणा का एक गूँजता तार सो गया/अस्त हुआ रवि दूर क्षितिज में, तिमिर ग्रस्त संसार हो गया जिसकी याद रह जाने वाली आरम्भिक पंक्तियाँ हैं।
‘प्राची’ और ‘सावन’ शीर्षक दो रचनाओं में उनकी रुबाइयाँ भी पाठकों को अच्छी लगेंगी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 174p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21 X 13.5 X 1.5 |