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Panchami

Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Panchami

गोपाल सिंह नेपाली...हिन्दी भारती की वीणा का एक तार...प्रवाह समता, भाषा की सरलता, भावों की रागात्मकता उनकी हर रचना में देखी जा सकती है।

—हरिवंशराय बच्चन

‘पंचमी’ गोपाल सिंह नेपाली की प्रकाशन के क्रम में पाँचवीं कविता-पुस्तक थी। इससे पहले की चार पुस्तकों के मुकाबले वे इसे कतिपय उच्च भावभूमि पर रची अपनी कविताओं का संग्रह मानते थे। संग्रह की पहली ही कविता में वे उठो उठो साहित्य-देवता, तुम्हें पाँचवीं बार पुकारा कहकर अपनी इस पाँचवीं पुस्तक को विशेष भाव से अपने पाठकों को समर्पित करते हैं।

इसी संग्रह में ‘विशाल भारत’ शीर्षक उनकी एक विशिष्ट कविता भी है, जिसके विषय में वे स्वयं कहते हैं कि यह मेरी सहज-सरल राष्ट्रीय गीत लिखने की चेष्टा का परिणाम है। यह देखना रोचक है कि आगे चलकर राष्ट्र-चेतना ही उनके गीतों और कविताओं के मुख्य सरोकारों में से एक रही।

प्रकृति के विभिन्न दृश्यों, चित्रों, बिम्बों और उसके सौन्दर्य को लेकर लिखी गईं ‘पतझड़ का चाँद’, ‘मेघ’, ‘बसंत गीत’ और ‘मेघ उठे सखि, काले-काले’ आदि उनकी कई चर्चित कविताएँ भी इस संकलन में मौजूद हैं।

इनके अलावा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के निधन पर लिखी गई एक अविस्मरणीय कविता भी इस संग्रह की उपलब्धि है : भव्य भारती की वीणा का एक गूँजता तार सो गया/अस्त हुआ रवि दूर क्षितिज में, तिमिर ग्रस्त संसार हो गया जिसकी याद रह जाने वाली आरम्भिक पंक्तियाँ हैं।

‘प्राची’ और ‘सावन’ शीर्षक दो रचनाओं में उनकी रुबाइयाँ भी पाठकों को अच्छी लगेंगी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 174p
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1.5
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Gopal Singh 'Nepali'

Author: Gopal Singh 'Nepali'

गोपाल सिंह ‘नेपाली’

गोपाल सिंह नेपाली का जन्म 11 अगस्त, 1911 को बेतिया (बिहार) में हुआ। प्रवेशिका तक शिक्षा।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘उमंग’ (1934), ‘पंछी’ (1934), ‘रागिनी’ (1935), ‘नीलिमा’ (1939), ‘पंचमी’ (1942), ‘नवीन’ (1944), ‘हिमालय ने पुकारा’ (1963), ‘असंकलित रचनाएँ’ (2007)।

‘सुधा’ (1933), ‘चित्रपट’ (1934), रतलाम टाइम्स’, ‘पुण्यभूमि’ (1935-1937), ‘योगी’ (1937-1939) के सम्पादन से जुड़े रहे। बेतिया राज प्रेस (1940-1944) के व्यवस्थापक भी रहे। फिल्मों के लिए गीत लिखे। फिल्म-निर्माण और निर्देशन क्षेत्र में भी सक्रिय रहे।

उनका निधन 17 अप्रैल, 1963 को हुआ।

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