‘प्रेमाश्रम’ प्रेमचन्द का सर्वप्रथम उपन्यास है, जिसमें उन्होंने नागरिक जीवन और ग्रामीण जीवन का सम्पर्क स्थापित किया है और परिवार के सीमित क्षेत्र से बाहर सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण करते हैं।
भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम की प्रथम झाँकी और भावनागत रामराज्य की स्थापना का स्वप्न ‘प्रेमाश्रम’ की अपनी विशेषता है। इसका उद्देश्य है—‘साम्य सिद्धान्त’। ‘प्रेमाश्रम’ में जीवन-मरण के गूढ़, जटिल प्रश्नों की मीमांसा है। सभी लोग पक्षपात और अहंकार से मुक्त हैं। आश्रम सारल्य, सन्तोष और सुविचार की तपोभूमि है। यहाँ न ईर्ष्या का सन्ताप है न लोभ और उन्माद, न तृष्णा का प्रकोप। यहाँ न धन की पूजा होती है और न दीनता पैरों-तले कुचली जाती है। आश्रम में सब एक-दूसरे के मित्र और हितैषी हैं। मानव-कल्याण ही सभी का चरम लक्ष्य है। इस बात का व्यावहारिक रूप हमें उपन्यास के ‘उपसंहार’ शीर्षक अंश में मिलता है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2024, Ed. 7th |
Pages | 340p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14 X 2 |