प्रेमचन्द हर व्यक्ति की, पूरे समाज की और देश की समस्याओं को सुलझाना चाहते थे, पर हिंसा से नहीं, विद्रोह से नहीं, अशान्ति से नहीं और अलगाव से भी नहीं। वे समस्याओं को सुलझाना चाहते थे प्रेम से, अहिंसा से, शान्ति से, सौहार्द से, एकता से और आदर्श से। 'प्रतिज्ञा' उपन्यास भी उनकी इसी लेखकीय मुहिम का एक पड़ाव है जिसमें उन्होंने विधवाओं की समस्या पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। उनके समय में विधवाओं की स्थिति आज के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा दुखद थी। विधवाओं की दुर्दशा से ही उद्वेलित होकर इस उपन्यास में अमृत प्रतिज्ञा करते हैं कि वे किसी विधवा से ही शादी करेंगे ताकि उनके चलते किसी एक स्त्री को तो दुखों से त्राण मिले। ये प्रतिज्ञा वे तब करते हैं; जब समाज विधवाओं के पुनर्विवाह तक के लिए तैयार नहीं था। प्रेम, पीड़ा और आदर्शों की नाटकीय यात्रा से गुजरते हुए उपन्यास उस बिन्दु पर पहुँचता है जहाँ अमृत राय की प्रतिज्ञा एक बड़े फलक पर पूरी होती है। वे विधवाओं के लिए एक आश्रम खोलते हैं, और अपना तन-मन-धन उसे ही समर्पित कर देते हैं। इस उपन्यास में स्वतंत्रता पूर्व भारत के सामाजिक-पारिवारिक मूल्यों को भी नज़दीक से देखा जा सकता है जिन्हें प्रेमचन्द ने बहुत प्रामाणिकता से अंकित किया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2023 |
Edition Year | 2023, Ed. 1st |
Pages | 100p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |