गगन गिल की कविताओं की एक यात्रा स्पष्ट दिखाई देती है—बाहर से भीतर की ओर की। ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ शीर्षक उनका संग्रह अपने समय की एक घटना थी। हिन्दी के कविता-संसार ने उसे ख़ूब ही उत्साह से ग्रहण किया था। इस संग्रह की कविताओं ने भीतर से उदास लेकिन फिर भी संसार में अपनी जगह को लेकर पर्याप्त सजग एक लड़की की छवि को प्रकाशित किया। भीतर की वह उदासी, अकेलापन, अपने ‘होने’ और अपने एक ‘स्त्री होने’ का वह अहसास जैसे बड़ा होता गया; संसार का बाहरी शोर और दिल की थपक-थपक जैसे आमने-सामने खड़ी इकाइयाँ हो गईं। इस दौर में उन्होंने जो लिखा वह सृष्टि के पवित्रतम की खोज थी, जो मनुष्य के आत्म की कंदराओं में स्थित होता है। आकांक्षाओं से मुक्त, अपने होने की कील से बिंधा हुआ, सम्पूर्ण और व्यथित। इस चयन में उनकी पूरी चेतना-यात्रा को सुविचारित ढंग से सँजोया गया है—‘मैं जब तक आई बाहर’ संग्रह तक, जिसमें पीड़ा का संचार भीतर और बाहर दोनों तरफ़ होता है। देश और काल की पौरुषपूर्ण व्यवस्था के बीच स्त्री की सूक्ष्म असहमति और अपने दुःख को देखने का साक्षी भाव उनके संवेदनशील और सटीक शब्द-संयोजन में एक अविस्मरणीय अनुभव की तरह अंकित होता है।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2023 |
Edition Year | 2023, Ed. 1st |
Pages | 152p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 17.5 X 12 X 1 |