Yah Aakanksha Samay Nahin

Author: Gagan Gill
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Yah Aakanksha Samay Nahin
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कोई भी कविता अपने समय से गुज़रकर ही सार्थकता अर्जित करती है, यह बात गगन गिल की कविता भी प्रमाणित तो करती है, लेकिन इस तरह नहीं कि समय उनके यहाँ कविता का कोई घोषित विषय हो। ये कविताएँ निस्सन्देह नितान्त निजी अनुभूतियों की कविताएँ हैं। लेकिन यदि कवयित्री इन नितान्त निजी अनुभूतियों और अपने स्वर-वैशिष्ट्य को अक्षत रखते हुए भी युग-संवेदन को व्यंजित कर पाती है, तो इसकी वजह यही है कि समय उसकी काव्योक्तियों में नहीं बल्कि उसके स्थापत्य में, उसकी लय-संरचना में विन्यस्त होता है। यही कारण है कि गगन गिल की कविता को एक दृश्य की तरह देखें तो वह एक शान्त, निरावेग झील का आभास देती है, लेकिन उसे स्पर्श करें तो समय के सभी तनावों-दबावों की थरथराहट महसूस होती है। अक्सर यह कविता शब्दों में नहीं, उनके बीच के अन्तराल में सम्भव होती है। गगन गिल की कविता में शब्द और शब्द के बीच जिस तनाव का अनुभव होता है, उसे सिर्फ़ संगीत की तरह महसूस किया जा सकता है, उसका वक्तव्य नहीं हो सकता।

इसलिए इस बात का महत्त्व एक हद तक ही है कि ये कविताएँ प्रेम के बारे में हैं, वैराग्य के बारे में अथवा स्त्री की स्थिति आदि के बारे में। 'जल के भीतर सूख रहे जल', 'गूँगे के कंठ में याद आया गीत' अथवा 'पिछले जन्म में अधबनी रह गयी थी रोटी तुम्हारे नाम की' ऐसी निजी अनुभूतियों को व्यंजित करते शब्दों के बीच के अन्तराल को विन्यस्त करती एक सम्पीडक-कॉम्प्रेस्ड- लय न केवल समय की जटिलता और विकलता की ध्वन्याकृति हो जाती है, बल्कि इसी कारण अपनी ही एक भाषा की तलाश भी। इसलिए इन काव्यानुभूतियों से गुज़रते हुए रॉबर्तो हुआरोज़ की इस उक्ति का स्मरण आना अस्वाभाविक नहीं है कि कविता भाषा के तल में अस्तित्व का विस्फोट है।

—नन्दकिशोर आचार्य

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Gagan Gill

Author: Gagan Gill

गगन गिल

सन् 1983 में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ कविता-शृंखला के प्रकाशित होते ही गगन गिल (जन्म : 1959, नई दिल्ली; शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी साहित्य) की कविताओं ने तत्कालीन सुधीजनों का ध्यान आकर्षित किया था। तब से अब तक उनकी रचनाशीलता देश-विदेश के हिन्दी साहित्य के अध्येताओं, पाठकों और आलोचकों के विमर्श का हिस्सा रही है।

लगभग 35 वर्ष लम्बी इस रचना-यात्रा की नौ कृतियाँ हैं—पाँच कविता-संग्रह : ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ (1989), ‘अँधेरे में बुद्ध’ (1996), ‘यह आकांक्षा समय नहीं’ (1998), ‘थपक थपक दिल थपक थपक’ (2003), ‘मैं जब तक आयी बाहर’ (2018); एवं चार गद्य पुस्तकें : ‘दिल्ली में उनींदे’ (2000), ‘अवाक्’ (2008), ‘देह की मुँडेर पर’ (2018), ‘इत्यादि’ (2018)। ‘अवाक्’ की गणना बीबीसी सर्वेक्षण के श्रेष्ठ हिन्दी यात्रा-वृत्तान्तों में की गई है।

सन् 1989-93 में ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह’ व ‘संडे ऑब्ज़र्वर’ में एक दशक से कुछ अधिक समय तक साहित्य-सम्पादन करने के बाद सन् 1992-93 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका में पत्रकारिता की नीमेन फैलो। देश-वापसी पर पूर्णकालिक लेखन।

सन् 1990 में अमेरिका के सुप्रसिद्ध आयोवा इंटरनेशनल राइटिंग प्रोग्राम में भारत से आमंत्रित लेखक। सन् 2000 में गोएटे इंस्टीट्यूट, जर्मनी व सन् 2005 में पोएट्री ट्रांसलेशन सेंटर, लन्दन यूनिवर्सिटी के निमंत्रण पर जर्मनी व इंग्लैंड के कई शहरों में कविता पाठ। भारतीय प्रतिनिधि लेखक मंडल के सदस्य के नाते चीन, फ्रांस, इंग्लैंड, मॉरिशस, जर्मनी आदि देशों की एकाधिक यात्राओं के अलावा मेक्सिको, ऑस्ट्रिया, इटली, तुर्की, बुल्गारिया, तिब्बत, कम्बोडिया, लाओस, इंडोनेशिया की यात्राएँ।

‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’ (1984), ‘संस्कृति सम्मान’ (1989), ‘केदार सम्मान’ (2000), ‘हिन्दी अकादमी साहित्यकार सम्मान’ (2008), ‘द्विजदेव सम्मान’ (2010), ‘अमर उजाला शब्द सम्मान’ (2018) से सम्मानित।

ई-मेल : gagangill791@hotmail.com

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