Nepali Kranti-Katha-Hard Cover

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ISBN:9788126718276
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कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु अप्रतिम रचनाकार थे, साथ ही क्रान्ति-योद्धा भी। एक ओर वे अपनी रचनाधर्मिता के प्रति समर्पित थे, दूसरी ओर थी राजनीति में उनकी सतत सक्रियता। और यह राजनीतिक गतिविधि स्वदेश तक ही सीमित नहीं रही, पड़ोसी देश नेपाल के राजनीतिक आन्दोलनों से भी उनका गहरा लगाव रहा। ‘नेपाली क्रान्ति-कथा’ उसी का जीता-जागता प्रमाण है। यह क्रान्ति-कथा नेपाल के एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक क्रान्ति-अभियान की रोमांचक गाथा है। नेपाल की राणाशाही के अत्याचार और दमन के विरुद्ध जब वहाँ की जनता ने सशस्त्र संग्राम छेड़ दिया, तब रेणु ने उसमें एक सैनिक की हैसियत से भाग लिया था। अपने उसी अनुभव को उन्होंने शब्दों के ज़रिए चित्रात्मक अभिव्यक्ति देकर अविस्मरणीय और इतिहास का अंग बना दिया है। रेणु का यह बोलता रिपोर्ताज उनके अन्य रिपोर्ताजों से भिन्न है। इसमें किसी स्थान या घटना का महज आँखों-देखा विवरण नहीं बल्कि एक मुक्ति-युद्ध का जीवन्त चित्रण है, एक ऐसे कलाकार द्वारा जिसके कन्धे पर बन्दूक थी और हाथ में कलम।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1977
Edition Year 2024, Ed. 3rd
Pages 95p
Price ₹395.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 18 X 12.5 X 1
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Phanishwarnath Renu

Author: Phanishwarnath Renu

फणीश्वरनाथ रेणु

हिन्दी कथा-साहित्य को सांगीतिक भाषा से समृद्ध करनेवाले फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गाँव में 4 मार्च, 1921 को हुआ। 1942 के भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में वे प्रमुख सेनानी की हैसियत से शामिल रहे। 1950 में नेपाली जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए वहाँ की सशस्त्र क्रान्ति और राजनीति में सक्रिय योगदान। कथा-साहित्य के अतिरिक्त संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज़ आदि विधाओं में भी लिखा। व्यक्ति और कृतिकार, दोनों ही रूपों में अप्रतिम। जीवन की सांध्य वेला में राजनीतिक आन्दोलन से पुन: गहरा जुड़ाव। जे.पी. के साथ पुलिस दमन का शिकार हुए और जेल गए। सत्ता के दमनचक्र के विरोध में पद्मश्री लौटा दी।

‘मैला आँचल’ के अतिरिक्त आपके अन्य उपन्यास हैं–‘परती : परिकथा’, ‘दीर्घतपा’, ‘जुलूस’, ‘कितने चौराहे’, ‘पल्टू बाबू रोड’; ‘ठुमरी’, ‘अगिनखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘एक श्रावणी दोपहरी की धूप’, ‘अच्छे आदमी’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ तथा ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ में कहानियाँ संकलित हैं; आपका कविता-संग्रह है–‘कवि रेणु कहे’; संस्मरणात्मक पुस्तकें हैं : ‘ऋणजल धनजल’, ‘वन तुलसी की गन्ध’, ‘श्रुत-अश्रुत पूर्व’, ‘एकांकी के दृश्य’, ‘उत्तर नेहरू चरितम्’, ‘समय की शिला पर’ तथा ‘आत्मपरिचय’; ‘नेपाली क्रान्ति-कथा’ चर्चित रिपोर्ताज़ है।

रेणु रचनावली में आपका सम्पूर्ण रचना-कर्म पाँच खंडों में प्रस्तुत किया गया है।

11 अप्रैल, 1977 को देहावसान।

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