Sampurna Kahaniyan : Phanishwarnath Renu

Edition: 2021, Ed 5th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹449.25 Regular Price ₹599.00
25% Off
In stock
SKU
Sampurna Kahaniyan : Phanishwarnath Renu
- +
Share:

फणीश्वरनाथ रेणु—वह लेखक जिसने हिन्दी कथाधारा का रुख बदला, उसे ग्रामीण भारत के बिम्बों और ध्वनियों से समृद्ध किया और हिन्दी गद्य की भाषा को कविता से भी ज़्यादा प्रवहमान बनाया।

उन्हीं रेणु की सम्पूर्ण कहानी सम्पदा को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया जा रहा है।

प्रेम, संवेदना, हिंसा, राजनीति, अज्ञानता और भावुकता के विभिन्न रूप और रंगों की ये कहानियाँ भारत के ग्रामीण अंचल की चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं और स्वातंत्र्योत्तर भारत का सांस्कृतिक आईना हैं। इन कहानियों में लेखक ने लोकभाषा, जनसाधारण के रोज़मर्रा जीवन और परिवेश को जितने मांसल ढंग से व्यक्त किया है, उसने हिन्दी की ताक़त और क्षमता को भी बढ़ाया है।

रेणु की 27 अगस्त, 1944 में प्रकाशित पहली कहानी ‘बट बाबा’ से लेकर नवम्बर, 1972 में प्रकाशित अन्तिम कहानी ‘भित्तिचित्र की मयूरी’ सहित विभिन्न संग्रहों में प्रकाशित उनकी कहानियों को यहाँ साथ लाया गया है, ताकि पाठक अपने इस प्रिय लेखक को एक लय में पढ़ सकें।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2020
Edition Year 2021, Ed 5th
Pages 584p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 4
Write Your Own Review
You're reviewing:Sampurna Kahaniyan : Phanishwarnath Renu
Your Rating
Phanishwarnath Renu

Author: Phanishwarnath Renu

फणीश्वरनाथ रेणु

हिन्दी कथा-साहित्य को सांगीतिक भाषा से समृद्ध करनेवाले फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गाँव में 4 मार्च, 1921 को हुआ। 1942 के भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में वे प्रमुख सेनानी की हैसियत से शामिल रहे। 1950 में नेपाली जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए वहाँ की सशस्त्र क्रान्ति और राजनीति में सक्रिय योगदान। कथा-साहित्य के अतिरिक्त संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज़ आदि विधाओं में भी लिखा। व्यक्ति और कृतिकार, दोनों ही रूपों में अप्रतिम। जीवन की सांध्य वेला में राजनीतिक आन्दोलन से पुन: गहरा जुड़ाव। जे.पी. के साथ पुलिस दमन का शिकार हुए और जेल गए। सत्ता के दमनचक्र के विरोध में पद्मश्री लौटा दी।

‘मैला आँचल’ के अतिरिक्त आपके अन्य उपन्यास हैं–‘परती : परिकथा’, ‘दीर्घतपा’, ‘जुलूस’, ‘कितने चौराहे’, ‘पल्टू बाबू रोड’; ‘ठुमरी’, ‘अगिनखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘एक श्रावणी दोपहरी की धूप’, ‘अच्छे आदमी’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ तथा ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ में कहानियाँ संकलित हैं; आपका कविता-संग्रह है–‘कवि रेणु कहे’; संस्मरणात्मक पुस्तकें हैं : ‘ऋणजल धनजल’, ‘वन तुलसी की गन्ध’, ‘श्रुत-अश्रुत पूर्व’, ‘एकांकी के दृश्य’, ‘उत्तर नेहरू चरितम्’, ‘समय की शिला पर’ तथा ‘आत्मपरिचय’; ‘नेपाली क्रान्ति-कथा’ चर्चित रिपोर्ताज़ है।

रेणु रचनावली में आपका सम्पूर्ण रचना-कर्म पाँच खंडों में प्रस्तुत किया गया है।

11 अप्रैल, 1977 को देहावसान।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top