Rinjal Dhanjal

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Rinjal Dhanjal
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सन् 1966 का भयानक सूखा—जब अकाल की काली छाया ने पूरे दक्षिण बिहार को अपनी लपेट में ले लिया था और शुष्कप्राण धरती पर कंकाल ही कंकाल नज़र आने लगे थे...और सन् 1975 की प्रलयंकर बाढ़—जब पटना की सड़कों पर वेगवती वन्या उमड़ पड़ी थी और लाखों का जीवन संकट में पड़ गया था...

अक्षय करुणा और अतल-स्पर्शी संवेदना के धनी कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु प्राकृतिक प्रकोप की इन दो महती विभीषिकाओं के प्रत्यक्षदर्शी तो रहे ही, बाढ़ के दौरान कई दिनों तक एक मकान के दुतल्ले पर घिरे रह जाने के कारण भुक्तभोगी भी। अपने सामने और अपने चारों ओर मानवीय विवशता और यातना का वह त्रासमय हाहाकार देखकर उनका पीड़ा-मथित हो उठना स्वाभाविक था, विशेषतः तब, जबकि उनके लिए हमेशा ‘लोग’ और ‘लोगों का जीवन’ ही सत्य रहे। आगे चलकर मानव-यातना के उन्हीं चरम साक्षात्कार-क्षणों को शाब्दिक अक्षरता प्रदान करने के क्रम में उन्होंने संस्मरणात्मक रिपोर्ताज़ लिखे, और उन्हीं का संकलित रूप यह ‘ऋणजल धनजल’ है। इसमें वस्तुतः व्यापक मानवीय पीड़ाबोध की वह ‘अकथ कथा’ वर्णित है जो अक्षरशिल्पी रेणु की विलक्षण अन्तर्भेदी दृष्टि और लेखनी का संस्पर्श पाकर सहज ही शब्दचित्रात्मक और आश्चर्यजनक रूप से जीवन्त हो उठी है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1977
Edition Year 2020, Ed 8th
Pages 112p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Phanishwarnath Renu

Author: Phanishwarnath Renu

फणीश्वरनाथ रेणु

हिन्दी कथा-साहित्य को सांगीतिक भाषा से समृद्ध करनेवाले फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गाँव में 4 मार्च, 1921 को हुआ। 1942 के भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में वे प्रमुख सेनानी की हैसियत से शामिल रहे। 1950 में नेपाली जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए वहाँ की सशस्त्र क्रान्ति और राजनीति में सक्रिय योगदान। कथा-साहित्य के अतिरिक्त संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज़ आदि विधाओं में भी लिखा। व्यक्ति और कृतिकार, दोनों ही रूपों में अप्रतिम। जीवन की सांध्य वेला में राजनीतिक आन्दोलन से पुन: गहरा जुड़ाव। जे.पी. के साथ पुलिस दमन का शिकार हुए और जेल गए। सत्ता के दमनचक्र के विरोध में पद्मश्री लौटा दी।

‘मैला आँचल’ के अतिरिक्त आपके अन्य उपन्यास हैं–‘परती : परिकथा’, ‘दीर्घतपा’, ‘जुलूस’, ‘कितने चौराहे’, ‘पल्टू बाबू रोड’; ‘ठुमरी’, ‘अगिनखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘एक श्रावणी दोपहरी की धूप’, ‘अच्छे आदमी’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ तथा ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ में कहानियाँ संकलित हैं; आपका कविता-संग्रह है–‘कवि रेणु कहे’; संस्मरणात्मक पुस्तकें हैं : ‘ऋणजल धनजल’, ‘वन तुलसी की गन्ध’, ‘श्रुत-अश्रुत पूर्व’, ‘एकांकी के दृश्य’, ‘उत्तर नेहरू चरितम्’, ‘समय की शिला पर’ तथा ‘आत्मपरिचय’; ‘नेपाली क्रान्ति-कथा’ चर्चित रिपोर्ताज़ है।

रेणु रचनावली में आपका सम्पूर्ण रचना-कर्म पाँच खंडों में प्रस्तुत किया गया है।

11 अप्रैल, 1977 को देहावसान।

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