4 मार्च, 1921; शुक्रवार को पूर्णिया ज़िले (बिहार) के औराही-हिंगना नामक गाँव में जिस आदमी को ‘धरती की माँग पर विशेष रूप से’ भेजा गया था, बाद में वही फणीश्वरनाथ रेणु के नाम से जाना गया, जिसकी चर्चा उसने स्वयं अपनी कलम से यत्र-तत्र की है और भारत यायावर द्वारा संकलित-सम्पादित यह पुस्तक रेणु की ऐसी ही रचनाओं को एक साथ प्रस्तुत करती है।
पूरी पुस्तक चार खंडों में संयोजित है—आत्म-रचना, आत्म-संस्मरण, आत्म-वक्तव्य और व्यक्तिगत निबन्ध। इन रचनाओं से गुज़रते हुए हम लेखक के जीवन और जीवनचर्या, परिवेश और रचनागत विस्तार तथा समाज के प्रति उसके व्यापक एवं गहरे सरोकार से परिचित होते हैं। एक जागरूक लेखक के रूप में कभी वे लेखन और राजनीति के नाज़ुक रिश्ते पर विचार करते हुए दिखते हैं, कभी अपनी रचनाओं की समकालिक पृष्ठभूमि को लेकर हुई आलोचनाओं को झेलते हैं, कभी ‘आंचलिक लेखक’ बना दिए जाने की साहित्यिक राजनीति का खुलासा करते हैं, तो कभी ‘प्रेमचन्द के बाद' जैसे फतवों से हुए नुक़सान से बेचैन दिखाई देते हैं। लेकिन यह सब लिखते हुए भी वे नितान्त व्यक्तिगत नहीं हो जाते, उनकी रचनात्मकता के ख़ास-ख़ास गण उनका साथ नहीं छोड़ते और उनकी भाषा एक शिल्प-भंगिमा सब कहीं मौजूद रहती है।
संक्षेप में कहा जाए तो यह कृति हमें रेणु जैसे महान कथाशिल्पी को उसके वृहत्तर समय-सन्दर्भ में समझने का अवसर प्रदान करती है।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Edition Year | 1998 |
Pages | 187p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |