कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु अप्रतिम रचनाकार थे, साथ ही क्रान्ति-योद्धा भी। एक ओर वे अपनी रचनाधर्मिता के प्रति समर्पित थे, दूसरी ओर थी राजनीति में उनकी सतत सक्रियता। और यह राजनीतिक गतिविधि स्वदेश तक ही सीमित नहीं रही, पड़ोसी देश नेपाल के राजनीतिक आन्दोलनों से भी उनका गहरा लगाव रहा। ‘नेपाली क्रान्ति-कथा’ उसी का जीता-जागता प्रमाण है। यह क्रान्ति-कथा नेपाल के एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक क्रान्ति-अभियान की रोमांचक गाथा है। नेपाल की राणाशाही के अत्याचार और दमन के विरुद्ध जब वहाँ की जनता ने सशस्त्र संग्राम छेड़ दिया, तब रेणु ने उसमें एक सैनिक की हैसियत से भाग लिया था। अपने उसी अनुभव को उन्होंने शब्दों के ज़रिए चित्रात्मक अभिव्यक्ति देकर अविस्मरणीय और इतिहास का अंग बना दिया है। रेणु का यह बोलता रिपोर्ताज उनके अन्य रिपोर्ताजों से भिन्न है। इसमें किसी स्थान या घटना का महज आँखों-देखा विवरण नहीं बल्कि एक मुक्ति-युद्ध का जीवन्त चित्रण है, एक ऐसे कलाकार द्वारा जिसके कन्धे पर बन्दूक थी और हाथ में कलम।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 1977 |
Edition Year | 2024, Ed. 3rd |
Pages | 95p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 18 X 12.5 X 1 |