Jo Bhula Diye Gaye

आज़ादी का अमृत महोत्सव
As low as ₹640.00 Regular Price ₹800.00
You Save 20%
In stock
Only %1 left
SKU
Jo Bhula Diye Gaye
- +

चौरी चौरा कांड को कांग्रेसियों ने इतिहास के बाहर कर दिया कि उसके कारण गांधी जी ने अपना आन्दोलन वापस ले लिया था। क्रान्तिकारियों ने उसे बाहर कर दिया, क्योंकि उसमें किसी नामी-गिरामी क्रान्तिकारी ने हिस्सा नहीं लिया था। अंग्रेज़ों ने बाहर कर दिया, क्योंकि वह उनकी सत्ता को सीधे ललकार गया। दु:खद यह कि उसे जन ने भी बाहर कर दिया, जबकि वह सबाल्टर्न की दृष्टि से हुआ आज़ादी की लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप था। फिर उसकी स्मृति कुछ लोगों के मन में हमेशा गूँजती रही है और नई पीढ़ी के लोग उससे जुड़े लोगों के बारे इधर काफ़ी जिज्ञासु दिखते हैं।

इस उपन्यास में उनकी कथा के साथ-साथ गोरखपुर के इलाक़े में प्रान्त और राष्ट्र से जुड़कर यह आज़ादी की लड़ाई 1920 से लेकर 1942 तक कैसे चली थी, उसकी एक झलक यहाँ मिलेगी, वहाँ के सामाजिक जीवन की तमाम छवियों के साथ।

उत्तर-पूर्व को लेकर लिखनेवाले श्रीप्रकाश मिश्र के लेखन में यह उपन्यास एक नया मोड़ इंगित करता है, जो पाठकों को कई तरह से पसन्द आएगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 580p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 15.5 X 3
Write Your Own Review
You're reviewing:Jo Bhula Diye Gaye
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Shriprakash Mishra

Author: Shriprakash Mishra

श्रीप्रकाश मिश्र

ग्राम—जड़हा, ज़िला—कुशीनगर (उ.प्र.) के निवासी श्रीप्रकाश मिश्र एम.ए. ( राजनीति शास्त्र) और एल-एल.एम. हैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय से। विद्यार्थी जीवन में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में ‘मुक्तिवाहिनी’ के साथ रहे। केन्द्र सरकार की सेवा में रहते हुए उत्तर-पूर्व, कश्मीर, भूटान, बांग्लादेश आदि में रहे। अब इलाहाबाद में रहते हैं और कविता की अनियतकालीन पत्रिका ‘उन्नयन' का संपादन/प्रकाशन करते है। ‘रामविलास शर्मा सम्मान’ के संस्थापक व पुरस्कर्ता हैं।

प्रकाशन : पाँच कविता-संग्रह : ‘मौन पर शब्द’ (1986), ‘शब्द के बारीक तारों से’ (2009), ‘शब्द संभावनाएँ हैं’ (2012), ‘मिअमाड़’ (2015), ‘कि जैसे होना ख़तरनाक संकेत’ (2017); चार उपन्यास : ‘जहाँ बाँस फूलते हैं’ (1996), ‘रूपतिल्ली की कथा’ (2006), ‘जो भुला दिए गए’ (2013), ‘आपरेशन ख़ुदाबख्‍़श’ (2015); चार आलोचना की पुस्तकें : ‘यह जो आ रहा है हरा’ (1992), ‘यूरोप के आधुनिक कवि’ (2011), ‘चुग की नब्ज़’ (2012), ‘रचना का सच’ (2013) के अलावा चिन्तन की दो पुस्तकें : ‘सोच की दृग छाया’ (2017) और ‘उत्तर आधुनिक अवधारणाएँ’ (2018) प्रकाशित हैं।

Read More
Books by this Author

Back to Top