प्रस्तुत उपन्यास मेघालय बसनेवाली ख़ासी जनजाति के सांस्कृतिक जीवन पर आधारित है। इसका कालखंड वह समय है जब एक तरफ़ अँग्रेज़ उन्हें ईसाई बनाने में लगा था तो आसपास का हिन्दू नेतृत्व उन्हें हिन्दू बनाने में। जनजाति दोनों से बचकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखना चाह रही थी। उससे उत्पन्न संघर्ष की गाथा इस कृति में एक बढ़िया कहानी के माध्यम से उभरकर आई है। इसके पन्नों से गुज़रते हुए लगता है कि हम उस जीवन को न केवल देख रहे हैं, वरन् उसे जी भी रहे हैं। वहाँ की धूप, पानी, पहाड़, नदी, वायु, धरती, पेड़, पशु अपने समस्त सौन्दर्य, तेज, वेग और जीवन्तता के साथ मौजूद हैं, जिन्हें हम अपनी प्राणवायु में भरते चलते हैं। कवि होने के नाते लेखक का गद्य हमें बहुत आकृष्ट करता है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2019 |
Edition Year | 2019, 1st Ed. |
Pages | 335p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |