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Ram Prasad 'Bismil'
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रामप्रसाद ‘बिस्मिल’
रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रणी क्रान्तिकारी थे। वे शायर भी थे। उनका जन्म 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में हुआ था। चौदह वर्ष की उम्र में उन्होंने उर्दू का चौथा दर्जा पास किया पर उर्दू मिडिल की परीक्षा पास नहीं कर सके और अंग्रेजी पढ़ने लगे। युवावस्था में आर्यसमाजी विचारों से प्रभावित होकर आर्य समाज में शामिल हुए। कांग्रेस की तरफ भी आकर्षित हुए लेकिन जल्द ही क्रान्तिकारी विचारों से प्रभावित हो उस राह पर बढ़ चले।
1918 के ‘मैनपुरी षड्यंत्र’ में सरकार द्वारा प्रतिबन्धित पुस्तकें बेचने और अपने क्रान्तिकारी दल के लिए सरकारी खजाने को लूटने के आरोप उन पर लगे। 1920 में शचीन्द्रनाथ सान्याल और यदुगोपाल मुखर्जी के साथ हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया जिसका उद्देश्य सशस्त्र क्रान्ति के जरिये भारत में संघीय गणराज्य की स्थापना करना था।
1925 में एसोसिएशन ने काकोरी के पास ट्रेन रोककर सरकारी खजाना लूट लिया। इस मामले में एसोसिएशन के अन्य सदस्यों के साथ बिस्मिल पर भी मुकदमा चला। डेढ़ साल की कानूनी प्रक्रिया के बाद अशफ़ाकउल्ला खाँ, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह के साथ उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई। 19 दिसम्बर, 1927 को गोरखपुर जेल में उन्हें फाँसी दे दी गई। फाँसी से पहले जेल में ही उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। वे युवावस्था से ही लेखन करने लगे थे। देशभक्ति के भावों से भरी शायरी के साथ-साथ उन्होंने वैचारिक गद्य भी लिखा जिसमें उनका जोर औपनिवेशिक दासता के विरुद्ध संघर्ष करने, साम्प्रदायिक सद्भाव तथा राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने पर रहता था।