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Ujla Andhera

Edition: 2025, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Ujla Andhera

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उजला अँधेरा उपन्यास को पढ़ना एक ऐसे सच के सामने होना है जिससे पूरी व्यवस्था मुँह चुराती रही है। सामाजिक-व्यवस्था का वह सच  जिसने आज़ाद भारत के उस सपने को निरर्थक कर दिया जो इस देश के नागरिकों को समता, स्वतंत्रता और उजाले का आश्वासन देता था।

वह सच है जाति जो हर तरह की सामाजिक-आर्थिक प्रगति को ठेंगा दिखाती हुई हमारे समाज में आज भी जहाँ की तहाँ बनी हुई है। तीन पीढ़ियों के दुःख-दर्द और बदलाव के संघर्षों से रचा हुआ यह पूरा उपन्यास अपने आप में एक तीखा सवाल है जिसे जाति के यथार्थ से आँख मिलाते हुए पूछा गया है।

यह उपन्यास पूछता है कि भारत के लोग आज भी एक समान नागरिकता बोध और व्यवहार के अभ्यस्त क्यों नहीं हो पाए हैं; कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी समाज के एक बड़े हिस्से को अपने जन्म, विवाह एवं मृत्यु संस्कारों और उत्सवों को अपने ढंग से मनाने का अधिकार क्यों नहीं मिला; कि यह कैसी व्यवस्था है जिसमें सार्वजनिक सड़क को भी कुछ लोग अपनी निजी सम्पत्ति समझते हैं और चाहते हैं कि कौन उस पर चलेगा, कौन नहीं ये भी वे तय करें? और सबसे बड़ा यह सवाल कि एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र की सरकारें भी क्यों जाति की इस लक्ष्मण रेखा को नहीं लाँघ पातीं?

ऐसे तमाम सवालों से उपन्यास के पात्र टकराते हैं। बदलाव की बेचैनी हो या बराबरी के सपने, वे यहाँ एक सुलगती हुई आँच में धीरे-धीरे पकते हैं और सघन सामूहिकता के साथ दर्ज होते हैं। हमारे समय और समाज को समझने के लिए एक ज़रूरी उपन्यास! 

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2025
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 216p
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Kailash Wankhede

Author: Kailash Wankhede

कैलाश वानखेड़े

कैलाश वानखेड़े का जन्म 11 जनवरी, 1970 को इन्दौर, मध्य प्रदेश में हुआ। उनके दो कहानी-संग्रह ‘सत्यापन’ और ‘सुलगन’ प्रकाशित हैं। ‘उजला अँधेरा’ उनका पहला उपन्यास है। मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं में उनकी कहानियों के अनुवाद हुए हैं।

उन्हें ‘हंस कथा सम्मान’ तथा ‘मधुकर सिंह स्मृति सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।

सम्प्रति : भा. प्र. से. मध्य प्रदेश में कार्यरत।

ई-मेल : kailashwankhede70@gmail.com

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