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Baaqi Sab To Maya Hai

Author: Parag Mandle
Edition: 2025, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Baaqi Sab To Maya Hai

पराग मांदले गम्भीर और गांधीवादी आदर्शों में विश्वास रखनेवाले यथार्थवादी कथाकार हैं। उन्हें मैं बीते दो दशकों से अपनी गति और विनम्रता से हिन्दी कथा साहित्य को अपना देय देते देखती आ रही हूँ। अब तक उनकी चेतना के केन्द्र में सहज ही अन्तिम पंक्ति का अन्तिम आदमी रहता आया है और वे गहरे अनुभव में पगी कहानियाँ लिखते रहे हैं। इस बार वे स्त्री मन की कहानियाँ लेकर आए हैं, ऐसी भाषा में जिसमें कोई स्त्री अपना मन खोलना चाहे।

‘जीवन अधूरे क्षणों का समुच्चय होता है’—वे अपनी कहानी ‘मुकम्मल नहीं ख़ूबसूरत सफ़र हो’ में लिखते हैं, जो कि एक प्रेम त्रिकोण की जटिल मनोवैज्ञानिक कथा है। इस संकलन की हर कथा स्त्री के मानसिक संघर्ष की कथा है, चाहे वह ‘चाह की गति न्यारी’ की ‘छाया’ हो या ‘बाक़ी सब तो माया है’ की नायिका जो सोशल मीडिया पर हुई मित्रता में प्रेम की परिभाषा गढ़ती-तोड़ती हुई खुद भी जुड़ती-टूटती है। ‘वस्ल की कोख में खिलता है फूल हिज्र का’ में वे समाज, राजनीति और प्रेम का त्रिकोण लाते हैं। इसी तरह ‘दूर है मंज़िल अभी’ एक गांधीवादी, न्यूनतम में जीने के अभिलाषी पिता की आधुनिकता और साधन प्रिय बच्चों से मुठभेड़ की कथामात्र नहीं है, यह भौतिकतावादी समाज के साथ न चल पाने की विडम्बना की कथा भी है जहाँ साधन आपके वर्ग की पहचान हैं। आदिवासी स्त्रियों के स्वास्थ्य को लेकर संघर्ष और आदिवासी अस्मिता को लेकर होती आई हिंसक झड़पों के बीच उनके लिए काम करने वाले चिकित्साकर्मियों की स्थिति पर लिखी गई कहानी इस संकलन की उपलब्धि है।

ये कहानियाँ उन्हें एक ऐसे लेखक के तौर पर स्थापित करती हैं, जो कहानी की आत्मा छूने के लिए हर बार कायान्तरण करता है। लेखक की भाषा मानो एक अच्छी तरह गूँथी किसी कर्मकार की मिट्टी है जिसे वे दृश्यात्मकता, आन्तरिक जटिलता, भावनात्मक संघर्ष और विडम्बना के लिए बख़ूबी ढालते हैं। हर कथा का अपना एक परिवेश और सामयिकता है कि पाठक उस कथा से भीतर तक जुड़े बिना नहीं रह सकता।

—मनीषा कुलश्रेष्ठ

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Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2025
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 152p
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Parag Mandle

Author: Parag Mandle

पराग मांदले

पराग मांदले का जन्म 24 जुलाई, 1972 को उज्जैन, मध्य प्रदेश में हुआ। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से हिन्दी साहित्य में परास्नातक और डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद से पत्रकारिता स्नातक। ‘दैनिक अग्निपथ’ (उज्जैन), ‘मासिक कल्याण’ (गीताप्रेस, गोरखपुर), ‘दैनिक देवगिरी समाचार’ (औरंगाबाद) और ‘दैनिक लोकमत समाचार’ (औरंगाबाद) में कुल मिलाकर सात वर्षों तक पत्रकारिता की।

उनके दो कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं—‘राजा, कोयल और तन्दूर’ तथा ‘खिलेगा तो जलेगा ख़्वाब’। इसके अतिरिक्त गांधी विचारों पर आधारित पुस्तक ‘गांधी के बहाने’ भी प्रकाशित है जिस पर उन्हें तीसरा ‘सेतु पांडुलिपि पुरस्कार’ मिला है। देश के विभिन्न समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में कविताएँ तथा विभिन्न विषयों पर बड़ी तादाद में लेख और नियमित स्तम्भ प्रकाशित। वे गांधी विचारों के अध्ययन और प्रचार-प्रसार तथा पर्यावरण-संवर्धन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।

सम्प्रति : भारतीय सूचना सेवा के अन्तर्गत सहायक निदेशक पद पर कार्यरत।

ई-मेल : paragpmandle@gmail.com

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