Bihari Mazdooron Ki Peeda-Hard Cover

Special Price ₹382.50 Regular Price ₹450.00
You Save 15%
ISBN:9788183618465
Out of stock
SKU
9788183618465

मज़दूरों का विस्थापन न तो अकेले भारत में हो रहा है, न आज पहली बार। सभ्यता के प्रारम्भ से ही कामगारों-व्यापारियों का आवागमन चलता रहा है, लेकिन आज भूमंडलीकरण के दौर में भारत में मज़दूरों को प्रवासी बनानेवाली स्थितियाँ और वजहें बिलकुल अलग क़‍िस्म की हैं। उनका स्वरूप इस क़दर अलग है कि उनसे एक नए घटनाक्रम का आभास होता है। ज्ञात इतिहास में शायद ही कभी, लाखों नहीं, करोड़ों की संख्या में मज़दूर अपना घर-बार छोड़कर कमाने, पेट पालने और अपने आश्रितों के भरण-पोषण के लिए बाहर निकल पड़े हों।

देश के सबसे पिछड़े राज्य बिहार और सबसे विकसित राज्य पंजाब के बीच मज़दूरों की आवाजाही आज सबसे अधिक ध्यान खींच रही है। यह संख्या लाखों में है। पंजाब की अर्थव्यवस्था, वहाँ के शहरी-ग्रामीण जीवन में बिहार के 'भैया' मज़दूर अनिवार्य अंग बन गए हैं और बिहार के सबसे पिछड़े इलाक़ों के जीवन और नए विकास की सुगबुगाहट में पंजाब की कमाई एक आधार बनती जा रही है। यह पुस्तक इसी प्रवृत्ति, इसी बदलाव, इसी प्रभाव के अध्ययन की एक कोशिश है। इस कोशिश में लेखक के साल-भर गहन अध्ययन, लम्बी यात्राओं और मज़दूरों के साथ बिताए समय से पुस्तक आधिकारिक दस्तावेज़ और किसी रोचक कथा जैसी बन पड़ी है।

पंजाब और बिहार के बीच शटल की तरह डोलते मज़दूरों की जीवन-शैली की टोह लेती यह कथा कभी पंजाब का नज़ारा पेश करती है तो कभी बिहार के धुर पिछड़े गाँवों का। शैली इतनी रोचक और मार्मिक है कि लाखों प्रवासी मज़दूरों और पंजाब पर उनके असर के तमाम विवरणों का बखान करती यह पुस्तक कब ख़त्म हो जाती है, पता ही नहीं चलता।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 172p
Price ₹450.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
Write Your Own Review
You're reviewing:Bihari Mazdooron Ki Peeda-Hard Cover
Your Rating
Arvind Mohan

Author: Arvind Mohan

अरविन्द मोहन

अभी इंडिया न्यूज चैनल के सम्पादकीय सलाहकार का काम कर रहे अरविन्द मोहन पिछले चालीस साल से ज्यादा समय से पत्रकारिता में जमे हुए हैं। ‘जनसत्ता’, ‘इंडिया टुडे’, ‘हिन्दुस्तान’ और ‘अमर उजाला’ के बाद वे ‘एबीपी’ न्यूज से जुड़े रहे हैं। वे तीन साल तक सीएसडीएस में सम्पादक थे। लेकिन इसी के बीच समय-समय पर छुट्टी लेकर या साथ-साथ समाज विज्ञान के विषयों पर काम किए हैं या लगभग दर्जन गम्भीर किताबों का अनुवाद किया है या इतनी ही किताबों का सम्पादन किया है। अभी उनका मुख्य अध्ययन गांधी पर केन्द्रित है। चुनाव और जाति के सम्बन्धों पर उनकी खास दिलचस्पी रही है। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि अध्यापक के रूप में मीडिया के छात्रों का अध्यापन भी करते रहे हैं।

Read More
Books by this Author
Back to Top