Jatiyon Ka Loktantra : Jati Aur Chunav

Author: Arvind Mohan
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Jatiyon Ka Loktantra : Jati Aur Chunav
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इस किताब‍ का उद्देश्य भारत के चुनावी लोकतंत्र और उसमें जाति की भूमिका को समझना है। यह एक कठिन काम है, क्योंकि एक सामाजिक श‍‍क्ति‍ के रूप में खुद जाति को समझना भी आसान नहीं है। आधुनिकता, शिक्षा और समझदारी के भूमंडलीय विस्तार के बावजूद भारतीय समाज में जाति जहाँ थी, अब भी वहीं है। बल्कि अब वह ज्यादा आत्मविश्वास के साथ सामने आ रही है। चुनावों में अब उसकी निर्णायक स्थिति को हर कोई स्वीकार कर चुका है; जातिवार जनगणना की बातें हो रही हैं; राजनीतिक पार्टियाँ, नेता और मतदाताओं के बीच जातियों के आधार पर नए ध्रुवीकरण हो रहे हैं, टूट भी रहे हैं, फिर बन भी रहे हैं।

इसलिए यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि क्या जाति की इस राजनीतिक सक्रियता का कोई पैटर्न भी है, क्या कोई तरीका है यह जानने का कि जातियों की सतत गतिशील चुनावी गोलबन्दियाँ कैसे काम करती हैं। जाहिर है जिस देश में साढ़े चार हजार से ज्यादा समुदाय मौजूद हों, वहाँ इस सवाल को लेकर समाज में उतरना समुद्र में उतरने जैसा है।

वरिष्ठ पत्रकार, अरविन्द मोहन ने इस किताब में यही किया है। पत्रकारिता और चुनाव-अध्ययन के लगभग चार दशक के अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने इस किताब में पिछले 76 सालों के बदलावों को समझने और कुछ निर्णायक प्रतीत होनेवाली प्रवृत्तियों को रेखांकित करने की कोशिश की है। यह जटिल और सुदीर्घ अध्ययन उन्होंने राज्यवार विश्लेषण के आधार पर किया है। इससे पता चलता है कि यूपी-बिहार ही नहीं, लगभग पूरे देश का चुनावी भूगोल जातियों के आधार पर बनता-बिगड़ता है। 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 256p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Arvind Mohan

Author: Arvind Mohan

अरविन्द मोहन

अभी इंडिया न्यूज चैनल के सम्पादकीय सलाहकार का काम कर रहे अरविन्द मोहन पिछले चालीस साल से ज्यादा समय से पत्रकारिता में जमे हुए हैं। ‘जनसत्ता’, ‘इंडिया टुडे’, ‘हिन्दुस्तान’ और ‘अमर उजाला’ के बाद वे ‘एबीपी’ न्यूज से जुड़े रहे हैं। वे तीन साल तक सीएसडीएस में सम्पादक थे। लेकिन इसी के बीच समय-समय पर छुट्टी लेकर या साथ-साथ समाज विज्ञान के विषयों पर काम किए हैं या लगभग दर्जन गम्भीर किताबों का अनुवाद किया है या इतनी ही किताबों का सम्पादन किया है। अभी उनका मुख्य अध्ययन गांधी पर केन्द्रित है। चुनाव और जाति के सम्बन्धों पर उनकी खास दिलचस्पी रही है। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि अध्यापक के रूप में मीडिया के छात्रों का अध्यापन भी करते रहे हैं।

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