Jatiyon Ka Loktantra : Jati Aur Aarakshan

Author: Arvind Mohan
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Jatiyon Ka Loktantra : Jati Aur Aarakshan
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भारत के सामाजिक पदानुक्रम को आरक्षण ने काफी बदला है, लेकिन उतना शायद नहीं जितने की अपेक्षा थी, और जिसको ध्यान में रखकर हमारे संविधान-निर्माताओं ने सामाजिक न्याय को एक आधारभूत मूल्या माना था।

आज भी समाज का एक बड़ा हिस्सा सबसे कमजोर भारतवासियों को मिले आरक्षण को वैरभाव से देखता है, आज भी ऊँचे सरकारी पदों पर दलित-आदिवासी बहुत कम हैं और चतुर्थ श्रेणी या सफाई जैसे कामों में उनकी संख्या ज्यादा दिखाई देती है। ‘जातियों का लोकतंत्र’ शृंखला की यह पुस्तक भारत में आरक्षण की अवधारणा के पैदा होने, उसके लागू किए जाने, उसके विरोध और उसके समर्थन आदि हर पहलू पर विचार करती है। इसमें संकलित एक-एक आलेख को आरक्षण पर केन्द्रित प्रामाणिक अध्ययन माना जा सकता है,‍ जिन्हें इसके सम्पादक, अ‍रविन्द मोहन ने निश्चय ही इस उद्देश्य से जुटाया है कि हम आज, जबकि आरक्षण को बस एक चुनावी औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, यह जान सकें कि आरक्षण बतौर एक व्यवस्था और बतौर एक विचार क्या है!

यह पुस्तक आरक्षण के पीछे के तर्कों, इसे लेकर हुई बहसों, तथ्यों और विकल्पों, सबसे अवगत कराती है। इसके अध्ययन से एक सामान्य पाठक भी जान सकेगा कि लगातार बहस में रहनेवाले आरक्षण को लेकर हमें एक सामाजिक रूप में कैसे सोचना चाहिए; कि क्या वह महज एक आर्थिक प्रश्न है, या कि उसका कुछ सम्बन्ध मनुष्योचित व्यवहार और सम्मान से भी है!

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 248p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Arvind Mohan

Author: Arvind Mohan

अरविन्द मोहन

अभी इंडिया न्यूज चैनल के सम्पादकीय सलाहकार का काम कर रहे अरविन्द मोहन पिछले चालीस साल से ज्यादा समय से पत्रकारिता में जमे हुए हैं। ‘जनसत्ता’, ‘इंडिया टुडे’, ‘हिन्दुस्तान’ और ‘अमर उजाला’ के बाद वे ‘एबीपी’ न्यूज से जुड़े रहे हैं। वे तीन साल तक सीएसडीएस में सम्पादक थे। लेकिन इसी के बीच समय-समय पर छुट्टी लेकर या साथ-साथ समाज विज्ञान के विषयों पर काम किए हैं या लगभग दर्जन गम्भीर किताबों का अनुवाद किया है या इतनी ही किताबों का सम्पादन किया है। अभी उनका मुख्य अध्ययन गांधी पर केन्द्रित है। चुनाव और जाति के सम्बन्धों पर उनकी खास दिलचस्पी रही है। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि अध्यापक के रूप में मीडिया के छात्रों का अध्यापन भी करते रहे हैं।

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