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Antim Aakanksha-Hard Cover

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9788180312083
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किसी के स्वस्थ व्यवहार और उपकार के प्रति समर्पण की सीमा तक पहुँची हुई ऐसी कृतज्ञता कि बचपन से चाकरी में रहनेवाला नौकर अपने हमउम्र स्वामि-पुत्र के परिवार में अगले जन्म में भी जन्म लेने और उस परिवार की चाकरी करने की अन्तिम आकांक्षा अन्तिम साँस लेते समय प्रकट कर रहा हो—यही है वह अन्तरधारा जो इस उपन्यास में अनादि से अन्त तक प्रवाहित हो रही है। नौकर रमला को सेवा के पहले ही दिन पूरा नाम रामलाल से पुकारने का जो भाव उसका ख़ास पुत्र प्रकट करता है, वह भाव धीरे-धीरे अपने उत्कर्ष की ओर बढ़ता जाता है और रामलाल की अन्तिम आकांक्षा का कारण बन जाता है। उपन्यासकार सियारामशरण गुप्त अपने उपन्यासों में किसी न किसी ऐसी ही उत्कृष्ट भावना अथवा मान्यता को आधार बनाकर अपने उपन्यास की रचना करने के क़ायल थे, जिसे उन्होंने इस उपन्यास की भी अन्तरधारा के रूप में अपने कथानक में प्रवाहित किया है, जिससे उपन्यास रोचक और मनोरंजक बनने के साथ ही पाठक के अन्तर्मन को भी प्रभावित करनेवाला बन गया है 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 111P
Price ₹125.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Siyaramsharan Gupt

Author: Siyaramsharan Gupt

श्री सियारामशरण गुप्त

जन्म : 14 सितम्बर, 1895 ई. को गृहग्राम—चिरगाँव, झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुआ।

कवि, कथाकार और निबन्ध लेखक के रूप में ख्याति।

सियारामशरण गुप्त की रचनाओं में उनके व्यक्तित्व की सरलता, विनयशीलता, सात्त्विकता और करुणा सर्वत्र प्रतिफलित हुई है। वास्तव में गुप्त जी मानवीय संस्कृति के साहित्यकार हैं। उनकी रचनाएँ सर्वत्र एक प्रकार के चिन्तन, आस्था-विश्वासों से भरी हैं जो उनकी अपनी साधना और गांधी जी के साध्य-साधन की पवित्रता की गूँज से ओत-प्रोत हैं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘मौर्य-विजय’, ‘अनाथ’, ‘दूर्वादल’, ‘विषाद’, ‘आर्द्रा’, ‘आत्मोत्सर्ग’, ‘पाथेय’, ‘मृण्मयी’, ‘बापू’, ‘उन्मुक्त’, ‘दैनिकी’, ‘नकुल’, ‘नोआखली में’, ‘जयहिन्द’, ‘गीता-संवाद’, ‘गोपिका’, ‘अमृत-पुत्र’ (काव्य); ‘गोद’, ‘अन्तिम आकांक्षा’, ‘नारी’ (उपन्यास); ‘मानुषी’ (कहानी-संग्रह); ‘झूठ-सच’ (निबन्ध) तथा ‘पुण्य पर्व’ (नाटक) लोकप्रिय हैं।

देहावसान : 29 मार्च, 1963

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