किसी के स्वस्थ व्यवहार और उपकार के प्रति समर्पण की सीमा तक पहुँची हुई ऐसी कृतज्ञता कि बचपन से चाकरी में रहनेवाला नौकर अपने हमउम्र स्वामि-पुत्र के परिवार में अगले जन्म में भी जन्म लेने और उस परिवार की चाकरी करने की अन्तिम आकांक्षा अन्तिम साँस लेते समय प्रकट कर रहा हो—यही है वह अन्तरधारा जो इस उपन्यास में अनादि से अन्त तक प्रवाहित हो रही है। नौकर रमला को सेवा के पहले ही दिन पूरा नाम रामलाल से पुकारने का जो भाव उसका ख़ास पुत्र प्रकट करता है, वह भाव धीरे-धीरे अपने उत्कर्ष की ओर बढ़ता जाता है और रामलाल की अन्तिम आकांक्षा का कारण बन जाता है। उपन्यासकार सियारामशरण गुप्त अपने उपन्यासों में किसी न किसी ऐसी ही उत्कृष्ट भावना अथवा मान्यता को आधार बनाकर अपने उपन्यास की रचना करने के क़ायल थे, जिसे उन्होंने इस उपन्यास की भी अन्तरधारा के रूप में अपने कथानक में प्रवाहित किया है, जिससे उपन्यास रोचक और मनोरंजक बनने के साथ ही पाठक के अन्तर्मन को भी प्रभावित करनेवाला बन गया है
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2008, Ed. 1st |
Pages | 111P |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |