Pragatishil Chintak Siyaramsharan Gupta : Sampurna Kavya : Vols. 1-2

जागरूक व चिन्तनशील कवि सियारामशरण गुप्त के समग्र काव्य में जीवन के करुणाभाव, सहजता और यथार्थ, देशप्रेम, समाज की वास्तविकता इत्यादि को बड़ी सजीवता से प्रस्तुत किया गया है। जीवन के प्रति करुणा का भाव सहज और यथार्थ रूप में आप द्वारा रचित साहित्य में देखा जा सकता है। गुप्त जी के काव्य में तत्कालीन समाज का चित्रण, सामाजिक समस्याओं एवं उसके सुधार के रूप में परिलक्षित हुआ है।
गुप्त जी ने विभिन्न विधाओं कहानी, कविता तथा संस्मरण के माध्यम से साहित्य-सर्जना की है। गांधी विचारधारा के अनुयायी गीता के उपदेशों से भी बहुत प्रभावित थे। उनकी रचनाओं में जो देखने को मिलता है, उनको गांधी जी के तात्त्विक पक्ष को कविताओं में उतारने का प्रयास किया है।
सत्य, अहिंसा और प्रेम-सिद्धान्तों के माध्यम से मानव में व्याप्त असत्यरूपी अन्धकार से मुक्ति की कामना है तथा मानव-जीवन को सफल बनानेवाले गुणों जैसे—कर्तव्य, क्षमा, दया, धैर्य, दान, सेवा तथा उत्साह और सदाचार को काव्य के माध्यम से प्रस्तुत किया है। जटिल साधना द्वारा नैतिक गुणों को प्राप्ति का साधन बताया जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि आत्मबल ही मनुष्य की वास्तविक शक्ति है। स्वतंत्रता संग्राम के समय गांधी जी द्वारा चलाए गए सत्याग्रह आन्दोलन को आप महान सांस्कृतिक आन्दोलन बताते हैं। गांधीवादी यथार्थ, राष्ट्रप्रेम, विश्व-शान्ति, विश्व-प्रेम इत्यादि भावविचारों और जीवन के आदर्शों को प्रस्तुत करना तथा सात्त्विक भावोद्गारों के लिए गुप्त जी की कार्य-रचना सदैव स्मरणीय रहेगी।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 2016 |
Edition Year | 2016, Ed. 1st |
Pages | 1130p |
Translator | Not Selected |
Editor | Saroj Gupta |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 6 |
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