Jhuth Sach

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Jhuth Sach

सब झूठ, झूठ नहीं होते; सब सच, सच नहीं होते; इसी तरह सब निषेध भी निषेध नहीं होते। कुछ निषेध ऐसे भी होते हैं, जिनमें अनुज्ञा छिपी होती है।

-श्री सियारामशरण गुप्त

प्रस्तुत पुस्तक 'झूठ-सच' निबन्ध-संग्रह में चिन्तन का विशेष योग दिखायी देता है। वे लेखक की वैयक्तिकता से बंधे हुए हैं। किसी निबन्ध में बाल्यकाल की मधुर स्मृतियाँ हैं तो किसी में स्नेहियों के संस्मरण । कभी वे हिमालय की भावात्मक झलक प्रस्तुत करने में संलग्न दिखायी पड़ते हैं तो कभी कवि-चर्चा में निमग्न हो जाते हैं। कभी वे जीवन के विभिन्न स्तरों का विनोदपूर्ण उद्घाटन करते हैं तो कभी अपूर्ण की अपूर्णता का आस्वाद कराते हैं। खुले व्यक्तित्व की संहति, लेखक-पाठक के तादात्म्य, व्यंग्य-विनोद के सन्निवेश आदि के कारण उनके निबन्ध हिन्दी साहित्य के निर्बन्ध निबन्धों की परम्परा में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में परिणित होते हैं।

पुस्तक निश्चय ही पठनीय एवं संग्रहणीय है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1996
Edition Year 2011, Ed. 2nd
Pages 159p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Siyaramsharan Gupt

Author: Siyaramsharan Gupt

श्री सियारामशरण गुप्त

जन्म : 14 सितम्बर, 1895 ई. को गृहग्राम—चिरगाँव, झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुआ।

कवि, कथाकार और निबन्ध लेखक के रूप में ख्याति।

सियारामशरण गुप्त की रचनाओं में उनके व्यक्तित्व की सरलता, विनयशीलता, सात्त्विकता और करुणा सर्वत्र प्रतिफलित हुई है। वास्तव में गुप्त जी मानवीय संस्कृति के साहित्यकार हैं। उनकी रचनाएँ सर्वत्र एक प्रकार के चिन्तन, आस्था-विश्वासों से भरी हैं जो उनकी अपनी साधना और गांधी जी के साध्य-साधन की पवित्रता की गूँज से ओत-प्रोत हैं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘मौर्य-विजय’, ‘अनाथ’, ‘दूर्वादल’, ‘विषाद’, ‘आर्द्रा’, ‘आत्मोत्सर्ग’, ‘पाथेय’, ‘मृण्मयी’, ‘बापू’, ‘उन्मुक्त’, ‘दैनिकी’, ‘नकुल’, ‘नोआखली में’, ‘जयहिन्द’, ‘गीता-संवाद’, ‘गोपिका’, ‘अमृत-पुत्र’ (काव्य); ‘गोद’, ‘अन्तिम आकांक्षा’, ‘नारी’ (उपन्यास); ‘मानुषी’ (कहानी-संग्रह); ‘झूठ-सच’ (निबन्ध) तथा ‘पुण्य पर्व’ (नाटक) लोकप्रिय हैं।

देहावसान : 29 मार्च, 1963

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