वरिष्ठ उपन्यासकार कमलेश्वर का यह उपन्यास एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था की वकालत करता है जिसमें अपने बेरियों के लिए भी स्नेह व सम्मान की गुंजाइश हो। इस उपन्यास का कथा-फ़लक यों तो विस्तृत है लेकिन कमलेश्वर जी ने अपने रचनात्मक कौशल से इसे जिस तरह कम शब्दों में सम्भव किया है, वह क़ाबिले-तारीफ़ है। इस उपन्यस में स्वाधीनता के संघर्षकाल से लेकर सती-प्रथा विरोध तक की अनुगूँजें सुनी जा सकती हैं। इसमें अंग्रेज़ सिपाहियों की क्रूरता और रूढ़िवादी पारम्परिक समाज में विधवा स्त्री की त्रासद स्थिति का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है जो पाठको के मन में करुणा का भाव जगाता है। लोकप्रिय रचनाकार की क़लम से निकली एक अनूठी कृति।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2006 |
Edition Year | 2024, Ed. 3rd |
Pages | 128P |
Translator | Translator One |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1 |