Samudra Mein Khoya Hua Aadmi

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Samudra Mein Khoya Hua Aadmi
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“समुद्र में लापता हुए लोग भी बरसों बाद लौटकर आए हैं...” हरबंस उन्हें समझाने लगा—“बहुत बार समुद्रों में तूफ़ान आ जाते हैं। जहाज टूट जाते हैं। लोग समुद्र में खो जाते हैं...तैरते-तैरते वे अनजानी जगहों पर जा लगते हैं...” लेकिन बीरन न कहीं पहुँचा, न उसने किसी का दरवाज़ा खटखटाया, पहुँची सिर्फ़ उसके हमेशा के लिए विलीन हो जाने की ख़बर। अवाक् खड़ा रह गया, अपनी दैनंदिन चुनौतियों में उलझा-फँसा उसका परिवार। बीरन जिसे हमेशा अपने बाबूजी की बेबसी और मायूसी सताती रहती थी, जो कॉलेज के दिनों में शाम को ही अपनी ड्रेस धोकर सूखने के लिए डाल देता था, जूतों पर खड़िया फेर लेता था और जिसका भार, जिसकी मौजूदगी घर में किसी को महसूस नहीं होती थी, वही बीरन अपने बोझ से सबको मुक्त कर गया। मध्यवर्गीय जीवन के सफल चितेरे कमलेश्वर ने एक मार्मिक कथा के जरिए इस उपन्यास में दो समुद्रों की तरफ़ इशारा किए हैं—एक पानी का वह असीम सागर, जिसमें बीरन खो गया और दूसरा महानगर की ठंडी, उदासीन भीड़ का पराया समुद्र, जिसमें उसके पिता श्यामलाल और मासूम बहनें अपनी अलक्षित जिजीविषा के साथ तैरने की कोशिश करते रहे। आधुनिक सभ्यता के अथाह समुद्र में आज का मध्यवर्गीय व्यक्ति अपनी सीमाओं और विडम्बनाओं के साथ किस तरह लुप्त हो जाता है, यही इस उपन्यास का केन्द्रीय विषय है।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 1st
Pages 124p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Editorial Review

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Kamlesh

Author: Kamlesh

कमलेश

हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, विचारक, अनुवादक और राजनीतिकर्त्ता। अब दिवंगत। इनके तीन कविता-संग्रह ‘जरत्कारु’, ‘खुले में आवास’ और ‘बसाव’ प्रकाशित हुए हैं। कमलेश जी की कविताओं में भारतीय परम्परा की समृद्धि के दर्शन को अनेक आलोचकों ने रेखांकित किया है। इन्होंने पाब्लो नेरुदा की प्रसिद्ध कविता ‘माचू पिच्चू के शिखर’ समेत अनेक कविताओं के अनुवाद किए हैं। कमलेश जी ने साहित्य और इतिहास आदि अनेक अनुशासनों की पुस्तकों पर विस्तार से लिखा है। अपने निधन से पहले कमलेश जी भारत की जाति-व्यवस्था आदि अनेक संस्थानों को औपनिवेशिक विचारों के कुहासे से बाहर निकालकर सम्यक् आलोक में देखने का महती प्रयत्न कर रहे थे।

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