Zindaginama

Sahitya Academy Awards,आज़ादी का अमृत महोत्सव,Partition Of India,Fiction : Novel
Author: Krishna Sobti
As low as ₹449.10 Regular Price ₹499.00
You Save 10%
In stock
Only %1 left
SKU
Zindaginama
- +

लेखन को जीवन का पर्याय माननेवाली कृष्णा सोबती की क़लम से उतरा एक ऐसा उपन्यास जो सचमुच ‘ज़िन्दगी’ का पर्याय है—‘ज़िन्दगीनामा’।

‘ज़िन्दगीनामा’—जिसमें न कोई नायक। न कोई खलनायक। सिर्फ़ लोग और लोग और लोग। ज़िन्दादिल। जाँबाज़। लोग जो हिन्दुस्तान की ड्योढ़ी पंचनद पर जमे, सदियों ग़ाज़ी मरदों के लश्करों से भिड़ते रहे। फिर भी फ़सलें उगाते रहे। जी लेने की सोंधी ललक पर ज़िन्दगियाँ लुटाते रहे।

‘ज़िन्दगीनामा’ का कालखंड इस शताब्दी के पहले मोड़ पर खुलता है। पीछे इतिहास की बेहिसाब तहें। बेशुमार ताक़तें। ज़मीन जो खेतिहर की है और नहीं है, वही ज़मीन शाहों की नहीं है मगर उनके हाथों में है। ज़मीन की मालिकी किसकी है? ज़मीन में खेती कौन करता है? ज़मीन का मामला कौन भरता है? मुजारे आसामियाँ। इन्हें जकड़नों में जकड़े हुए शोषण के वे क़ानून जो लोगों को लोगों से अलग करते हैं। लोगों को लोगों में विभाजित करते हैं।

‘ज़िन्दगीनामा’ का कथानक खेतों की तरह फैला, सीधा-सादा और धरती से जुड़ा हुआ। ‘ज़िन्दगीनामा’ की मजलिसें भारतीय गाँव की उस जीवन्त परम्परा में हैं जहाँ भारतीय मानस का जीवन-दर्शन अपनी समग्रता में जीता चला जाता है।

‘ज़िन्दगीनामा’—कथ्य और शिल्प का नया प्रतिमान, जिसमें कथ्य और शिल्प हथियार डालकर ज़िन्दगी को आँकने की कोशिश करते हैं। ‘ज़िन्दगीनामा’ के पन्नों में आपको बादशाह और फ़क़ीर, शहंशाह, दरवेश और किसान एक साथ खेतों की मुँड़ेरों पर खड़े मिलेंगे। सर्वसाधारण की वह भीड़ भी जो हर काल में, हर गाँव में, हर पीढ़ी को सजाए रखती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1979
Edition Year 2022, Ed. 21st
Pages 392p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 3
Write Your Own Review
You're reviewing:Zindaginama
Your Rating
Krishna Sobti

Author: Krishna Sobti

कृष्णा सोबती

कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी, 1925 को गुजरात के उस हिस्से में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। अपनी लम्बी साहित्यिक यात्रा में कृष्णा सोबती ने हर नई कृति के साथ अपनी क्षमताओं का अतिक्रमण किया। निकष में विशेष कृति के रूप में प्रकाशित डार से बिछुड़ी से लेकर मित्रो मरजानी, यारों के यार, तिन पहाड़, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के, ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की, दिलो-दानिश, गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान, चन्ना, हम हशमत, समय सरगम, शब्दों के आलोक में, जैनी मेहरबान सिंह, सोबती-वैद संवाद, लद्दाख : बुद्ध का कमण्डल, मुक्तिबोध : एक व्यक्तित्व सही की तलाश में, लेखक का जनतंत्र और मार्फ़त दिल्ली तक उनकी रचनात्मकता ने जो बौद्धिक उत्तेजना, आलोचनात्मक विमर्श, सामाजिक और नैतिक बहसें साहित्य-संसार में पैदा कीं, उनकी अनुगूँज पाठकों में बराबर बनी रही।

ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार और साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता के अतिरिक्त अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों और अलंकरणों से शोभित कृष्णा सोबती कम लिखने को ही अपना परिचय मानती थीं, जिसे स्पष्ट इस तरह किया जा सकता है कि उनका ‘कम लिखना’ दरअसल ‘विशिष्ट’ लिखना था।

निधन 25 जनवरी, 2019 को दिल्ली में हुआ।

Read More
Books by this Author
Back to Top