Dilo-Danish

Author: Krishna Sobti
Edition: 2024, Ed. 7th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Dilo-Danish
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हिन्दी जगत में अपनी अलग और विशिष्ट पहचान के लिए मशहूर कृष्णा सोबती का हरेक उपन्यास विशिष्ट है। शब्दों की आत्मा को छूने-टटोलने वाली कृष्णा जी ने ‘दिलो-दानिश’ में दिल्ली की एक पुरानी हवेली और उसमें रहनेवाले लोगों के माध्यम से तत्कालीन जीवन और समाज का जैसा चित्रण किया है, वह अनूठा है।

हालाँकि इस उपन्यास का कथानक एक सामन्ती हवेली और सामन्ती रईस समाज व्यवस्था से वाबस्ता है लेकिन कृष्णा जी के रचनात्मक कौशल का ही कमाल है कि उन्होंने उसकी अच्छाइयों और बुराइयों का तटस्थ आत्मीयता के साथ चित्रण किया है। देश की आज़ादी से पहले हमारे समाज में सामन्ती पारिवारिक व्यवस्था थी जिसमें रईसों की पत्नी के अलावा दूसरी कई स्त्रियों से सम्बन्ध भी मान्य थे, लेकिन इस उपन्यास का मुख्य पात्र कृपानारायण पत्नी के अलावा मात्र एक अन्य स्त्री से सम्बन्ध रखता है, लेकिन दोनों स्त्रियों और उनके बच्चों की परवरिश जिस नेकनीयति से करता है, वह क़ाबिले-तारीफ़ है।

प्रेम-मुहब्बत, सामाजिकता और जीवन के सुख-दु:ख की छोटी-बड़ी कथा-कहानियों का संगुम्फित विन्यास है— ‘दिलो-दानिश’, जिसे पाठक नई सज्जा में फिर से पढ़ना चाहेंगे, यह हमारा विश्वास है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 1993
Edition Year 2024, Ed. 7th
Pages 235p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Krishna Sobti

Author: Krishna Sobti

कृष्णा सोबती

कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी, 1925 को गुजरात के उस हिस्से में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। अपनी लम्बी साहित्यिक यात्रा में कृष्णा सोबती ने हर नई कृति के साथ अपनी क्षमताओं का अतिक्रमण किया। निकष में विशेष कृति के रूप में प्रकाशित डार से बिछुड़ी से लेकर मित्रो मरजानी, यारों के यार, तिन पहाड़, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के, ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की, दिलो-दानिश, गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान, चन्ना, हम हशमत, समय सरगम, शब्दों के आलोक में, जैनी मेहरबान सिंह, सोबती-वैद संवाद, लद्दाख : बुद्ध का कमण्डल, मुक्तिबोध : एक व्यक्तित्व सही की तलाश में, लेखक का जनतंत्र और मार्फ़त दिल्ली तक उनकी रचनात्मकता ने जो बौद्धिक उत्तेजना, आलोचनात्मक विमर्श, सामाजिक और नैतिक बहसें साहित्य-संसार में पैदा कीं, उनकी अनुगूँज पाठकों में बराबर बनी रही।

ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार और साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता के अतिरिक्त अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों और अलंकरणों से शोभित कृष्णा सोबती कम लिखने को ही अपना परिचय मानती थीं, जिसे स्पष्ट इस तरह किया जा सकता है कि उनका ‘कम लिखना’ दरअसल ‘विशिष्ट’ लिखना था।

निधन 25 जनवरी, 2019 को दिल्ली में हुआ।

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