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Jenny Meharban Singh-E-Book

Author: Krishna Sobti
Edition: 2009
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
Special Price ₹112.50 Regular Price ₹150.00
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9788126716821-ebook

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भारतीय मूल के प्रवासी मेहरबान सिंह और उनकी पत्नी लिज़ा की इकलौती सन्तान सुनहरी बालों वाली जैनी पूर्व और पश्चिम, देश और विदेश के दोरंगी सम्मिश्रण की अनोखी तस्वीर है। चुलबुली मनमौजी, समझदार और गम्भीर एक साथ।

‘जैनी मेहरबान सिंह’ ज़िन्दगी के रोमांस, उत्साह, उमंग और उजास की पटकथा है जिसे कृष्णा सोबती ने गुनगुनी सादगी से प्रस्तुत किया है।

वैन्कूवर से दूर पिछवाड़े से झाँकते हैं एक-दूसरे के वैरी दो गाँव पट्टीवाल और अट्टारीवाल। एक-दूसरे को तरेरते दो कुनबों के बीच पड़ी गहरी दरारें, जान लेनेवाली दुश्मनियाँ और मरने-मारने की क़समें! ऐसे में मेहरबान सिंह और साहिब कौर की अल्हड़ मुहब्बत कैसे परवान चढ़ती! मेहरबान सिंह ने अपनी मुहब्बत की ख़ातिर जान बख़्श देने की दोस्ती निभाई और गाँव को पीठ दे कनाडा जा बसे। नए मुल्क में नई ज़िन्दगी चल निकली। लिज़ा को ख़ूब तो प्यार दिया, जैनी को भरपूर लाड़-चाव, फिर भी दिल से लगी साहिब कौर की छवि मद्धम न पड़ी—इसके बाद की चलचित्री कहानी क्या मोड़ लेती है— पढ़कर देखिए ‘जैनी मेहरबान सिंह’।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2007
Edition Year 2009
Pages 132p
Price ₹150.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Krishna Sobti

Author: Krishna Sobti

कृष्णा सोबती

कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी, 1925 को गुजरात के उस हिस्से में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। अपनी लम्बी साहित्यिक यात्रा में कृष्णा सोबती ने हर नई कृति के साथ अपनी क्षमताओं का अतिक्रमण किया। निकष में विशेष कृति के रूप में प्रकाशित डार से बिछुड़ी से लेकर मित्रो मरजानी, यारों के यार, तिन पहाड़, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के, ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की, दिलो-दानिश, गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान, चन्ना, हम हशमत, समय सरगम, शब्दों के आलोक में, जैनी मेहरबान सिंह, सोबती-वैद संवाद, लद्दाख : बुद्ध का कमण्डल, मुक्तिबोध : एक व्यक्तित्व सही की तलाश में, लेखक का जनतंत्र और मार्फ़त दिल्ली तक उनकी रचनात्मकता ने जो बौद्धिक उत्तेजना, आलोचनात्मक विमर्श, सामाजिक और नैतिक बहसें साहित्य-संसार में पैदा कीं, उनकी अनुगूँज पाठकों में बराबर बनी रही।

ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार और साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता के अतिरिक्त अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों और अलंकरणों से शोभित कृष्णा सोबती कम लिखने को ही अपना परिचय मानती थीं, जिसे स्पष्ट इस तरह किया जा सकता है कि उनका ‘कम लिखना’ दरअसल ‘विशिष्ट’ लिखना था।

निधन 25 जनवरी, 2019 को दिल्ली में हुआ।

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