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Vyavdhan : Bikhari Aas Nikhari Preet-Hard Cover

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‘व्यवधान’ पर अभिमत इस उपन्यास को बड़े चाव से पढ़ गया। मुझे प्रसन्नतापूर्ण विस्मय हुआ। घर के भीतर दुनिया का इन्होंने सजीव चित्र उपस्थित किया है। इनके पात्र जाने-पहचाने से लगते हैं। अत्यन्त परिचित वातावरण के भीतर इन्होंने कई अविस्मरणीय पात्रों की सृष्टि की है और विपत्तियों की आँधी को स्वर्ग की सीढ़ी में बदल दिया है। नारी पात्र बहुत सशक्त हैं।

—आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

इस उपन्यास में भारतीय आदर्शों एवं सात्त्विकता के प्रति असीम संवेदना है। श्रीमती शान्ति कुमारी बाजपेयी में एक सबल कलाकार है, इस उपन्यास को पढ़कर मुझे ऐसा अनुभव हुआ।...‘व्यवधान’ में किसी समस्या को नहीं उठाया गया है। प्रत्येक श्रेष्ठ कला की भाँति यह उपन्यास मानवीय संवेदना को लेकर चलता है।...भाषा मँजी हुई और गठी हुई है। मैं ऐसा समझता हूँ कि उनकी अपनी निजी शैली है, जो आगे चलकर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान बना लेगी। यही नहीं, श्रीमती बाजपेयी में एक तरह का सन्तुलन है जो श्रेष्ठ कला का अनिवार्य अंग माना जाता है।

—भगवतीचरण वर्मा

उपन्यास का सम्पूर्ण कथानक हृदयग्राही है। पात्रों को जीवन्त रूप में प्रस्तुत करने और उनकी चारित्रिक विशेषताओं को उभारने में आपकी रोचक एवं संवेदनामयी संवाद-योजना अत्यन्त सफल हुई है। भाषा-शैली की प्रेषणीयता भी स्तुत्य है।

—डॉ. नगेन्द्र

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका सुश्री शान्ति कुमारी बाजपेयी की कृति ‘व्यवधान’ को मैंने बड़े मनोयोग से पढ़ा। मुझे आश्चर्य हुआ। ...उनकी प्रथम रचना होकर भी यह उपन्यास अपने में सर्वथा प्रौढ़ कृति मालूम पड़ता है। कथानक के गुम्फन में सफ़ाई है और उसके भीतर क्रमागत रूप में परिस्थितियों की योजना बड़ी ही विशद है। पात्रों के चरित्र में निखार है, उनका अपना-अपना स्वतंत्र विकास हुआ है और उनके मनोवैज्ञानिक उतार-चढ़ाव की गति में पर्याप्त निर्मलता है।

—डॉ. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा

आपकी भाषा के प्रवाह, शैली के सामर्थ्य तथा चरित्र-चित्रण के कौशल से अत्यधिक प्रभावित हुआ। नामानुसार ‘व्यवधान’ के प्रसंग यत्र-तत्र मिलते हैं तथा ‘आस’ का ‘बिखरना’ एवं ‘प्रीत’ का ‘निखरना' भी पल-पल पर दिखाई देता है। दोनों ही नामकरण पूर्णत: यथार्थ हैं। आरम्भ और अन्त के प्रकरणों ने तो मुझे बार-बार रुलाया। आपकी रचना में जो सजीवता, भावनात्मक धड़कन और स्वानुभव का पुट है, उससे इस उपन्यास ने ‘आद्य’ होते हुए भी अपना ‘प्रथम’ स्थान बना लिया है।

—डॉ. पंडित ओंकारनाथ ठाकुर

उपन्यास लेखन एक दुस्तर सेतु को पार करने सरीखा है। हर्ष का विषय है कि श्रीमती शान्ति कुमारी बाजपेयी ऐसे प्रयास में कृतकार्य हुई हैं। उनकी कृति ‘व्यवधान’ का मैं स्वागत करता हूँ और एतदर्थ उन्हें हार्दिक बधाई देता हूँ।

—श्री राय कृष्णदास

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 351p
Price ₹300.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2.5
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Shanti Kumari Bajpai

Author: Shanti Kumari Bajpai

शान्ति कुमारी बाजपेयी

जन्म : 2 अक्टूबर, 1919; बरेली (उत्तर प्रदेश)।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), काशी हिन्दू विश्वविद्यालय; प्रारम्भिक शिक्षा महिला कॉलेज, लखनऊ।

अध्यापन : महिला महाविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (1948 से 1976)।

प्रमुख कृतियाँ : उपन्यास—‘व्यवधान’, ‘नदी लहरें और तूफ़ान’, ‘फूल पराग पंखुड़ियाँ’, ‘अरे! यह कैसा मन’, ‘घुँघरू’; हिन्दी साहित्य विवेचना—‘केशव की रामचन्द्रिका पर एक : दृष्टि’; मैथिलीशरण गुप्त—‘कवि का कृतित्व’, लघु नाटिका—‘घर भी एक क्यारी है’।

निधन : 28 जनवरी, 2005; लखनऊ (उत्तर प्रदेश)।

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