शान्ति कुमारी बाजपेयी का यह तीसरा उपन्यास दो दृष्टियों से अनूठा है। एक तो इसकी आत्मकथापरक शैली और दूसरे गद्य-पद्य-मिश्र चम्पू-सदृश रूप—ये दोनों ही इसे वैशिष्ट्य प्रदान करते हैं।

कथासूत्र में विशेष कसाव न होने पर भी मानव-मन की गहराइयों में झाँककर उसके अन्तस्तल का प्रत्यक्ष कराने की लेखिका की शक्ति रोचकता को निरन्तर बनाए रखती है।

रस की भाषा में बात करें तो शृंगार को इसमें भरपूर स्थान मिला है। लम्बा पूर्वराग, फिर मिलन, अन्त में सदा के लिए वियोग, इस प्रकार शृंगार के क्रमशः परिपाक और उसकी करुण में परिणति—इन सबका यहाँ मार्मिक चित्रण है।

रचना के अन्तिम अंश में नायिका को स्वयं द्वारा उपेक्षित प्रेमी के आजीवन प्रेम-व्रत-परिपालन और देहपात की बात जब ज्ञात होती है, तब उसके चित्त में करुण रस का एक पृथक् स्रोत फूट उठता है। उसके अन्तर्मन की भीतरी तह में छिपा प्रेम उभरकर जब घोर मन्थन को जन्म देता है, तब मन की जटिलता से साक्षात्कार होता है और ‘अरे! यह कैसा मन?’ इस उद्गार को सार्थकता मिलती है।

— प्रेमलता शर्मा

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 108p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1
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Shanti Kumari Bajpai

Author: Shanti Kumari Bajpai

शान्ति कुमारी बाजपेयी

जन्म : 2 अक्टूबर, 1919; बरेली (उत्तर प्रदेश)।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), काशी हिन्दू विश्वविद्यालय; प्रारम्भिक शिक्षा महिला कॉलेज, लखनऊ।

अध्यापन : महिला महाविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (1948 से 1976)।

प्रमुख कृतियाँ : उपन्यास—‘व्यवधान’, ‘नदी लहरें और तूफ़ान’, ‘फूल पराग पंखुड़ियाँ’, ‘अरे! यह कैसा मन’, ‘घुँघरू’; हिन्दी साहित्य विवेचना—‘केशव की रामचन्द्रिका पर एक : दृष्टि’; मैथिलीशरण गुप्त—‘कवि का कृतित्व’, लघु नाटिका—‘घर भी एक क्यारी है’।

निधन : 28 जनवरी, 2005; लखनऊ (उत्तर प्रदेश)।

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