श्रीमती शान्ति कुमारी बाजपेयी का उपन्यास ‘घुँघरू’ अर्द्धनारीश्वर की वाङ्मयी साधना में अर्पित एक पुष्प है। प्रकृति ने मानव को स्त्री और पुरुष—दो रूपों में अभिव्यक्ति दी है। इन दोनों स्वरूपों की क्षमताएँ, कार्यपद्धति और उपलब्धियाँ भिन्न-भिन्न हैं। परन्तु वे एक साथ मिलकर ही परिपूर्ण हो पाती हैं और सृष्टि में अपनी सार्थकता प्रकट करती हैं। पुरुष अपने पौरुष से सर्वस्व प्राप्त कर सकता है तो नारी अपने प्रेम से सर्वस्व त्याग कर सकती है। पुरुष का धर्म—साहस, सिद्धि और शक्ति है तो नारी का धर्म—ममता, विश्वास और सेवा है। पुरुष की सार्थकता अर्जन में और नारी की सार्थकता समर्पण में दिखाई पड़ती है। ये दोनों विभूतियाँ जब एक साथ मिलकर अपनी भूमिकाओं को चरितार्थ करती हैं तो विधाता की कल्याणी सृष्टि विकसित होकर मंगल के महासमुद्र में पर्यवसित होती है। दोनों के सम्मिलन में ही परिपूर्णता है—अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का रहस्य यही है और प्रस्तुत उपन्यास में इसी की प्रतिष्ठा है।

भारतीय संस्कृति में जिन उदात्त मानवीय विभूतियों और मूल्यों की प्रतिष्ठा है, उनकी सार्थकता भी प्रस्तुत उपन्यास में दिखाई गई है। शिव बिना शक्ति के शव है और शक्ति जब उसके साथ मिलती है तो शिवत्व आश्चर्यजनक ढंग से संसार में अभिव्यक्त हो सकता है—भारतीय जीवन में पुरुष और नारी इसी भूमिका में प्रतिष्ठित किए गए हैं। प्रस्तुत उपन्यास के पात्र इसी रूप में जीकर लोक-कल्याण की साधना में निरत हैं। प्रेम का अत्यन्त उदात्त, संयत और धर्म से ध्रुव निश्चित स्वरूप यहाँ विद्यमान है जो आँसुओं से चरितार्थ होकर कल्याण के महासमुद्र में मिलता है। उपन्यास की भाषा-शैली और वर्णन सौष्ठव की अपनी गरिमा है जो अपने मन्तव्य को पूर्णरूपेण अभिव्यक्त करने में सफल है।

प्रस्तुत उपन्यास के द्वारा हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि तो होती ही है, साथ ही भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की अमर प्रतिष्ठा का भी यह अन्यतम साधन है। भारतीय मनीषा को इससे परितोष मिल सकेगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 184p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Shankar Puntambeker

Author: Shankar Puntambeker

शंकर पुणतांबेकर

जन्म : 26 मई, 1925; कुंभराज (ज़िला गुना, मध्य प्रदेश)

शिक्षा : विदिशा, ग्वालियर, आगरा में। एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (इतिहास), पीएच.डी. (हिन्दी)

कार्य : विदिशा (म.प्र.) में अध्यापकी (1947-1960) तथा जलगाँव (महाराष्ट्र) में प्राध्यापकी (1960-85)।

प्रमुख कृतियाँ : ‘शतरंग के खिलाड़ी’, ‘दुर्घटना से दुर्घटना तक’, ‘मेरी फाँसी’, ‘गिद्ध मँडरा रहा है’, ‘कैक्टस के काँटे’, ‘प्रेम-विवाह’, ‘विजिट यमराज की’, ‘अंगूर खट्टे नहीं हैं’, ‘वदनामचा, ‘तीन व्यंग्य नाटक’, ‘व्यंग्य अमरकोश’, ‘पतनजली’, ‘बाअदब बेमुलाहज़ा’, ‘एक मंत्री स्वर्गलोक में’।

सम्मान : ‘व्यंग्य के चकल्लस’ (1994); ‘व्यंग्यश्री’ (2002) पुरस्कारों के अतिरिक्त ‘अक्षर साहित्य सम्मान’ भी प्राप्त।
निधन : 31 जनवरी, 2016

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