Vikalang Shraddha Ka Daur-Hard Cover

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ISBN:9788126703418
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9788126703418
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हरिशंकर परसाई ने अपनी एक पुस्तक के लेखकीय वक्तव्य में कहा था–‘व्यंग्यअब शूद्रसे क्षत्रियमान लिया गया है। विचारणीय है कि वह शूद्र से क्षत्रिय हुआ है, ब्राह्मण नहीं, क्योंकि ब्राह्मण कीर्तनकरता है।

निस्सन्देह व्यंग्य कीर्तन करना नहीं जानता, पर कीर्तन को और कीर्तन करनेवालों को खूब पहचानता है। कैसे-कैसे अवसर, कैसे-कैसे वाद्य और कैसी-कैसी तानेंजरा-सा ध्यान देंगे तो अचीन्हा नहीं रहेगा विकलांग श्रद्धा का (यह) दौर।

विकलांग श्रद्धा का दौर  के व्यंग्य अपनी कथात्मक सहजता और पैनेपन में अविस्मरणीय हैं, ऐसे कि एक बार पढक़र इनका मौखिक पाठ किया जा सके। आए दिन आसपास घट रही सामान्य-सी घटनाओं से असामान्य समय-सन्दर्भों और व्यापक मानव-मूल्यों की उद्भावना न सिर्फ रचनाकार को मूल्यवान बनाती है बल्कि व्यंग्य-विधा को भी नई ऊँचाइयाँ सौंपती है। इस दृष्टि से प्रस्तुत कृति का महत्त्व और भी ज्यादा है।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1980
Edition Year 2023, Ed. 10th
Pages 147p
Price ₹495.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Harishankar Parsai

Author: Harishankar Parsai

हरिशंकर परसाई

22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश, होशंगाबाद के जमानी गाँव में जन्मे हरिशंकर परसाई का आरम्भिक जीवन कठिन संघर्ष का रहा। पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया और फिर ‘डिप्लोमा इन टीचिंग’ का कोर्स भी।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’ (कहानी-संग्रह); ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ (उपन्यास); ‘तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘तुलसीदास चन्दन घिसैं’, ‘हम इक उम्र से वाकिफ हैं’, ‘जाने-पहचाने लोग’, ‘कहत कबीर’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ (व्यंग्य निबन्ध-संग्रह); ‘पूछो परसाई से’ (साक्षात्कार)। ‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में उनकी सभी रचनाएँ संकलित हैं। लगभग सभी भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में उनकी रचनाओं के अनुवाद हुए हैं।

उन्हें ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, मध्य प्रदेश के ‘शिखर सम्मान’ समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

10 अगस्त, 1995 को उनका निधन हुआ।

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