Reshmi Khwabon Ki Dhoop-Chhaon

Author: Prahlad Agarwal
Edition: 2011, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
15% Off
Out of stock
SKU
Reshmi Khwabon Ki Dhoop-Chhaon

यश चोपड़ा रूमान के जादूगर थे। उन्होंने हिन्दी सिनेमा में तीन पीढ़ियों के साथ सफ़र किया। जब यश चोपड़ा ने अपनी रचना-यात्रा शुरू की तब महबूब, बिमल राय, राजकपूर, गुरुदत्त, विजय आनन्द वग़ैरह का गौरवगान था और फिर वे सूरज बड़जात्या, करन जौहर, संजय लीला भंसाली, राम गोपाल वर्मा और आशुतोष गोवारीकर जैसे फ़िल्मकारों की पीढ़ी के साथ सृजनरत रहे। इस पीढ़ी के साथ सफ़र करते हुए उन्होंने ‘डर’, ‘दिल तो पागल है’ और ‘वीर जारा’ जैसी फ़िल्में बनाईं जिनसे वे सिर्फ़ रोमान के बादशाह ही साबित नहीं हुए—वरन् नई पीढ़ी के साथ इस तरह खड़े हुए कि उसके मार्गदर्शक भी बन गए।

पर हमारे इस आख्यान के कथानायक मात्र ‘निर्देशक’ यश चोपड़ा हैं। वे फ़िल्म निर्देशक होने के साथ ही और भी बहुत कुछ थे। फ़िल्म-निर्माता से लेकर स्टूडियो के मालिक तक और फिर फिल्मोद्योग के एक एम्बेसेडर की तरह भी उन्हें देखा गया। इन तमाम रूपों के बीच से यह सिर्फ़ उस यश चोपड़ा का क़िस्सा है जिसने 1959 से 2004 के बीच पैंतीस सालों में इक्कीस फ़िल्मों का निर्देशन किया और अपने जीवनकाल में ही अपनी विरासत को अगली पीढ़ी के हाथों सौंप दिया और उसे अपने ज़माने से भी अधिक फलता-फूलता देखा।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 224p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
Write Your Own Review
You're reviewing:Reshmi Khwabon Ki Dhoop-Chhaon
Your Rating
Prahlad Agarwal

Author: Prahlad Agarwal

प्रह्लाद अग्रवाल

यायावर, आवारा मिज़ाज। संगीत, साहित्य और सिनेमा से गहरी आशिक़ी। पिछले तीन दशकों में बहुआयामी लेखन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशन।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘हिन्दी कहानी : सातवाँ दशक’ (आलोचना); ‘तानाशाह’ (उपन्यास); ‘राजकपूर : आधी हक़ीक़त आधा फ़साना’, ‘प्यासा : चिर अतृप्त गुरुदत्त’, ‘कवि शैलेन्द्र : ज़िन्दगी की जीत में यक़ीन’, ‘उत्ताल उमंग : सुभाष घई की फ़िल्मकला’, ‘बाज़ार के बाजीगर : इक्कीसवीं सदी का सिनेमा’, ‘ओ रे माँझी... : बिमलराय का सिनेमा’, ‘जुग-जुग जिए मुन्नाभाई : छवियों का मायाजाल’, ‘रेशमी ख़्वाबों की धूप-छाँव : यश चोपड़ा का सिनेमा’, ‘महाबाज़ार के महानायक’ (कविता/सिनेमा)।

‘प्रगतिशील वसुधा’ के बहुचर्चित फ़िल्म विशेषांक ‘हिन्दी सिनेमा : बीसवीं से इक्कीसवीं सदी तक’ का सम्पादन एवं कई पुस्तकों के सहयोगी लेखक।

शासकीय स्वशासी महाविद्यालय में प्राध्यापक-पद से सेवानिवृत्त।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top