Ramkatha : Utpatti Aur Vikas

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Ramkatha : Utpatti Aur Vikas
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सुयोग्य लेखक ने इस ग्रन्थ की तैयारी में कितना परिश्रम किया है, यह पुस्तक के अध्ययन से ही समझ में आ सकता है। रामकथा से सम्बन्ध रखनेवाली किसी भी सामग्री को आपने छोड़ा नहीं है। ग्रन्थ चार भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में ‘प्राचीन रामकथा साहित्य’ का विवेचन है। इसके अन्तर्गत पाँच अध्यायों में वैदिक साहित्य और रामकथा, वाल्मीकिकृत रामायण, महाभारत की रामकथा, बौद्ध रामकथा  तथा जैन रामकथा सम्बन्धी सामग्री की पूर्ण परीक्षा की गई है। द्वितीय भाग का सम्बन्ध ‘रामकथा की उत्पत्ति’ से है और इसके चार अध्यायों में दशरथ-जातक की समस्या, रामकथा के मूल स्रोत  के सम्बन्ध में विद्वानों के मत, प्रचलित वाल्मीकीय रामायण के मुख्य प्रक्षेपों तथा रामकथा के प्रारम्भिक विकास पर विचार किया गया है। ग्रन्थ के तृतीय भाग में ‘अर्वाचीन रामकथा साहित्य का सिंहावलोकन’ है। इसमें भी चार अध्याय हैं। पहले, दूसरे अध्याय में संस्कृत के धार्मिक तथा ललित साहित्य में पाई जानेवाली रामकथा सम्बन्धी सामग्री की परीक्षा है। तीसरे अध्याय में आधुनिक भारतीय भाषाओं के रामकथा सम्बन्धी साहित्य का विवेचन है। इसमें हिन्दी के अतिरिक्त तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, काश्मीरी, सिंहली आदि समस्त भाषाओं के साहित्य की छानबीन की गई है। चौथे अध्याय में विदेश में पाए जानेवाले रामकथा के रूप का सार दिया गया है और इस सम्बन्ध में तिब्बत, खोतान, हिन्देशिया, हिन्दचीन, स्याम, ब्रह्मदेश आदि में उपलब्ध सामग्री का पूर्ण परिचय एक ही स्थान पर मिल जाता है। अन्तिम तथा चतुर्थ भाग में रामकथा सम्बन्धी एक-एक घटना को लेकर उसका पृथक्-पृथक् विकास दिखलाया गया है। घटनाएँ काण्ड-क्रम से ली गई हैं अत: यह भाग सात काण्डों के अनुसार सात अध्यायों में विभक्त है। उपसंहार में रामकथा की व्यापकता, विभिन्न रामकथाओं की मौलिक एकता, प्रक्षिप्त सामग्री की सामान्य विशेषताएँ, विविध प्रभाव तथा विकास का सिंहावलोकन है।

—धीरेन्द्र वर्मा

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1950
Edition Year 2023, Ed. 19th
Pages 648p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 3.5
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Father Kamil Bulke

Author: Father Kamil Bulke

फ़ादर कामिल बुल्के

जन्म 1 सितम्बर, सन् 1909 में बेल्जियम देश के रैम्सकैपल स्थान में हुआ। मिशनरी कार्य के लिए भारत आए और यहीं के नागरिक हो गए। प्रयाग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से सम्बद्ध रहकर आपने अपना शोध प्रबन्ध ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ (सन् 1950) प्रस्तुत किया। यह अपने विषय का अद्वितीय ग्रन्थ है। मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लू बर्ड’ का ‘नीलपक्षी’ नाम से रूपान्तर किया (सन् 1958)। इसके अतिरिक्त आपकी दो प्रमुख कृतियाँ हैं—‘अंगरेजी-हिन्दी कोश’ (सन् 1968) तथा ‘सुसमाचार’ : (न्यू टेस्टमेण्ट  के चारों ईसा चरित, 1971)। राँची के सेण्ट जेवियर्स कॉलेज में हिन्दी तथा संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रहे। भारत सरकार द्वारा सन् 1974 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित।

आपका निधन 1984 में हुआ।

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