Rajarshi

Translator: Jaishree Dutt
Edition: 2014, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Rajarshi
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रचना-क्रम में ‘राजर्षि’ (1885) रवीन्द्रनाथ का दूसरा उपन्यास है। इसके कथानक का केन्द्रीय-सूत्र त्रिपुरा के इतिहास से ग्रहण किया गया है और रचनाकार ने अपनी कल्पना व नवीन उद्भावना शक्ति के सहारे उसे उपन्यास का रूप दिया है। सारी घटनाएँ गोविन्दमाणिक्य और रघुपति के चारों ओर घूमती हैं। ये दोनों पात्र वस्तुत: दो अलग प्रवृत्तियों के प्रतिनिधि हैं। नक्षत्रमाणिक्य, बिल्वन ठाकुर, जयसिंह, शाह शुजा, केदारेश्वर अपने-अपने ढंग से उपन्यास के कथानक में झरनों, नदियों, अन्तरीपों, गह्वरों के समान दृश्य-अदृश्य दशाओं का निर्माण करते हैं। मन को सबसे अधिक झकझोरते हैं हासि और ताता। दोनों बालक लक्ष्य बेधने में लेखक की सबसे अधिक सहायता करते हैं। ‘राजर्षि’ में रवीन्द्रनाथ का कवि रूप भी है तथा उनकी सांस्कृतिक व लोक-चेतना भी। अनुवाद में मूल कथ्य के साथ इनकी रक्षा की चेष्टा भी की गई है। आवश्यकतानुसार पाद-टिप्पणियाँ देकर बंगाली-समाज की परम्पराओं को सबके लिए सुलभ करने का प्रयास किया गया है। सामग्री की प्रामाणिकता के सन्दर्भ में यह अनुवाद पाठकों को निराश नहीं करेगा।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 160p
Translator Jaishree Dutt
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Ravindranath Thakur

Author: Ravindranath Thakur

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

जन्म : 7 मई, 1861; को जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी (कोलकाता)।

शिक्षा : स्कूल की पढ़ाई सेंट जेवियर स्कूल में हुई। लन्दन कॉलेज विश्वविद्यालय इंग्लैंड में क़ानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए। 1883 में मृणालिनी के साथ विवाह हुआ। 1901 में प्रकृति के सान्निध्य में शान्तिनिकेतन की स्थापना की।

विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नए प्राण फूँकने वाले युगद्रष्टा थे। ऐसे एकमात्र कवि जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं—भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रीय ‘गान आमार सोनार बांग्ला’।

युगद्रष्टा टैगोर के बहुआयामी सृजन-संसार में ‘गीतांजलि’, ‘पूरबी प्रवाहिनी’, ‘शिशु भोलानाथ’, ‘महुआ’, ‘वनवाणी’, ‘परिशेष’, ‘पुनश्च’, ‘वीथिका शेषलेखा’, ‘चोखेरबाली’, ‘कणिका’, ‘नैवेद्य मायेर खेला’, ‘क्षणिका’, ‘गीताली’, ‘गीतिमाल्य’, ‘कथा ओ कहानी’ और ‘शिशु’ आदि शामिल हैं।

कुछ पुस्तकों का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी किया।

निधन : 7 अगस्त, 1941

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