Char Natak

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Char Natak
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चार नाटक पुस्तक में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की चार अनूदित रचनाएँ प्रकाशित हैं। ये रचनाएँ हैंदृघर बाहर, विसर्जन, लाल कनेर और शेषरक्षा। अनुवाद एवं नाट्यरूपान्तर सुप्रसिद्ध रंग-मर्मज्ञ प्रतिभा अग्रवाल ने किया है। उनके अनुसार इन ‘अनुवादों का एक इतिहास है जो पाँच दशकों के कालखंड में फैला हुआ है’। इन नाटकों को पढ़ते हुए अनुभव किया जा सकता है कि अनुवाद और रूपान्तर ने मूल रचना की आत्मा को सुरक्षित रखा है।
अनुवाद वैसे भी परकाया प्रवेश सरीखा नाम है, फिर गुरुदेव की अद्भुत और निहितार्थों से भरी रचनाओं का अनुवाद! प्रतिभा अग्रवाल के शब्दों मेंदृरवीन्द्रनाथ की रचनाओं का अनुवाद कड़ी परीक्षा की तरह होता है। कथ्य के गूढ़ार्थ को समझना, उसे हृदयंगम करना, किसी अन्य भाषा में उसके लिए उपयुक्त शब्दावली पाना, लेखक के कवित्व को बरकरार रखते हुए और शिल्प के सौन्दर्य को सुरक्षित रखते हुए अनुवाद करना साहसपूर्ण नहीं वरन् एक साहसिक काम होता है। फिर भी लोग करते रहते हैं।
कथा और शिल्प की दृष्टि से चारों नाटकों में पर्याप्त भिन्नता मिलती है। सबकी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। नाट्यालेखों के साथ इन पर संक्षिप्त चर्चा की गई है।
रंगप्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय पुस्तक।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 344p
Translator Pratibha Agarwal
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Ravindranath Thakur

Author: Ravindranath Thakur

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

जन्म : 7 मई, 1861; को जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी (कोलकाता)।

शिक्षा : स्कूल की पढ़ाई सेंट जेवियर स्कूल में हुई। लन्दन कॉलेज विश्वविद्यालय इंग्लैंड में क़ानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए। 1883 में मृणालिनी के साथ विवाह हुआ। 1901 में प्रकृति के सान्निध्य में शान्तिनिकेतन की स्थापना की।

विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नए प्राण फूँकने वाले युगद्रष्टा थे। ऐसे एकमात्र कवि जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं—भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रीय ‘गान आमार सोनार बांग्ला’।

युगद्रष्टा टैगोर के बहुआयामी सृजन-संसार में ‘गीतांजलि’, ‘पूरबी प्रवाहिनी’, ‘शिशु भोलानाथ’, ‘महुआ’, ‘वनवाणी’, ‘परिशेष’, ‘पुनश्च’, ‘वीथिका शेषलेखा’, ‘चोखेरबाली’, ‘कणिका’, ‘नैवेद्य मायेर खेला’, ‘क्षणिका’, ‘गीताली’, ‘गीतिमाल्य’, ‘कथा ओ कहानी’ और ‘शिशु’ आदि शामिल हैं।

कुछ पुस्तकों का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी किया।

निधन : 7 अगस्त, 1941

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