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Nirala Rachanawali : Vols. 1-8-Hard Cover

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निराला “आरम्भ से ही विद्रोही कवि के रूप में हिन्दी में दिखाई पड़े। गतानुगतिकता के प्रति तीव्र विद्रोह उनकी कविताओं में आदि से अन्त तक बना रहा। व्यक्तित्व की जैसी निर्बाध अभिव्यक्ति इनकी रचनाओं में हुई है, वैसी अन्य छायावादी कवियों में नहीं हुई।...सर्वत्र व्यक्तित्व की अत्यन्त पुरुष अभिव्यक्ति ही निराला की कविताओं का प्रधान आकर्षण है। फिर भी विरोधाभास यह है कि निराला में अपने व्यक्तित्व को सबसे अलग करके अभिव्यक्त करने की चेतना सबसे कम है।...यह ध्यान देने की बात है कि निराला जी के आरम्भिक प्रयोग छन्द के बन्धन से मुक्ति पाने का प्रयास है। छन्द के बन्धनों के प्रति विद्रोह करके उन्होंने उस मध्ययुगीन मनोवृत्ति पर ही पहला आघात किया था जो छन्द और कविता को प्राय: समानार्थक समझने लगी थी।...परन्तु निराला जी ने जब छन्दों के प्रति विद्रोह किया तो उनका उद्देश्य छन्द की अनुपयोगिता बताना नहीं था। वे केवल कविता में भावों की—व्यक्तिगत अनुभूति के भावों की—स्वछन्द अभिव्यक्ति को महत्त्व देना चाहते थे। जिसे वे मुक्तछन्द कहते थे, उसमें भी एक प्रकार की झंकार और एक प्रकार का ताल विद्यमान है। परिमल की जिन रचनाओं में वस्तु-व्यंजना की ओर कवि का ध्यान है, उनमें उनका व्यक्तित्व स्पष्ट नहीं हुआ किन्तु ‘तुम और मैं’, ‘जूही की कली’ जैसी कविताओं में उनकी कल्पना उनके आवेगों के साथ होड़ करती है। यही कारण है कि ये कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुई हैं। बड़े कथात्मक प्रयोगों में निराला जी को अधिक सफलता मिली। वे पन्त की तरह अत्यधिक वैयक्तिकतावादी कवि नहीं हैं। बड़े आख्यानों—जैसे काव्य-विषय में उन्हें वस्तु-व्यंजना का भी अवसर मिला है और कल्पना के पंख पसारने का भी मौक़ा मिल जाता है। इसीलिए उनमें निराला अधिक सफल हुए हैं। ‘तुलसीदास’, ‘राम की शक्तिपूजा’ और ‘सरोज-स्मृति’ जैसी कविताएँ उनकी सर्वोत्तम कृतियाँ हैं। इनमें भाषा का
अद्भुत प्रवाह पाठक को निरन्तर व्यस्त बनाए रहता है। कल्पना यहाँ आवेगों के सामने फीकी लगती है।”

—हजारी प्रसाद द्विवेदी

‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘अनामिका’ और ‘तुलसीदास’ नामक काव्यकृतियों को सँजोए हुए रचनावली का यह खंड महाकवि की पूर्ववर्ती काव्य-साधना का सजीव साक्ष्य प्रस्तुत करता है। विचार-समृद्ध भावोद्रेक और सहज उदात्त स्वर निराला-काव्य की विशिष्ट पहचान है और अपनी काव्य-साधना के माध्यम से उन्होंने वस्तुओं एवं घटनाओं के भीतर पैठकर असाधारण रूप से भावात्मक सत्य का सन्धान किया है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 1983
Edition Year 2022, Ed. 7th
Pages 3984p
Price ₹12,995.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 19.5
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Suryakant Tripathi 'Nirala'

Author: Suryakant Tripathi 'Nirala'

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

निराला का जन्म वसन्त पंचमी, 1896 को बंगाल के मेदिनीपुर ज़िले के महिषादल नामक देशी राज्य में हुआ। निवास उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़ि‍ले के गढ़ा कोला गाँव में। शिक्षा हाईस्कूल तक ही हो पाई। हिन्दी, बांग्ला, अंग्रेज़ी और संस्कृत का ज्ञान उन्होंने अपने अध्यवसाय से स्वतंत्र रूप में अर्जित किया।

प्राय: 1918 से 1922 ई. तक निराला महिषादल राज्य की सेवा में रहे, उसके बाद से सम्पादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद-कार्य। 1922-23 ई. में समन्वय’ (कोलकाता) का सम्पादन। 1923 ई. के अगस्त से मतवालामंडल में। कलकत्ता छोड़ा तो लखनऊ आए, जहाँ गंगा पुस्तकमाला कार्यालय और वहाँ से निकलनेवाली मासिक पत्रिका सुधासे 1935 ई. के मध्य तक सम्बद्ध रहे। प्राय: 1940 ई. तक लखनऊ में। 1942-43 ई. से स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहकर मृत्यु-पर्यन्त स्वतंत्र लेखन और अनुवाद-कार्य। पहली प्रकाशित
कविता : जन्मभूमि (प्रभा’, मासिक, कानपुर; जून 1920)। पहली प्रकाशित पुस्तक : अनामिका (1923 ई.)।

प्रमुख कृतियाँ : आराधना, गीतिका, अपरा, परिमल, गीतगुंज, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, बेला, अर्चना, नए पत्ते, अणिमा, रागविराग, सांध्य काकली, असंकलित रचनाएँ (कविता-संग्रह); बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, कुल्लीभाट, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, महाराणा प्रताप, भीष्म पितामह, चमेली, काले कारनामे, इन्दुलेखा (अपूर्ण) (उपन्यास); सुकुल की बीवी, लिली, चतुरी चमार, महाभारत, सम्पूर्ण कहानियाँ (कहानी-संग्रह); प्रबन्ध प्रतिमा, प्रबन्ध पद्म, चयन, चाबुक, संग्रह (निबन्ध-संग्रह); दो शरण, निराला संचयन, निराला रचनावली (सम्पूर्ण साहित्य)।

निधन : 15 अक्टूबर, 1961

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