Nij Brahma Vichar

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धर्म के सामान्य अनुयायी, साधारण आस्थावान् लोग हों या धर्म को हिंसक राजनीति में बदलनेवाले चतुर सुजान, धर्म के अध्येता हों या कठोर आलोचक और घोर विरोधी—अपने सारे मतभेदों के बावजूद इनमें से अधिकांश एक बात पर सहमत हैं। वह यह कि धर्म और अध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। या तो अध्यात्म फ़िज़ूल की बात है, या फिर धर्म ही अध्यात्म का एकमात्र आधार और माध्यम है। या तो अध्यात्म का आशय है—समाजनिरपेक्ष आत्मलीनता या अध्यात्म का अर्थ है प्रतिक्रियावादी रहस्यवाद। दोनों में से किसी भी तर्क-पद्धति को अपनाइए, निष्कर्ष पहले से तय है : यदि अध्यात्म के प्रश्नों में आपकी दिलचस्पी है तो आप धर्म को अपनाइए; यदि आप धर्म से असुविधा महसूस करते हैं तो अध्यात्म को भी साथ-साथ ख़ारिज कर दीजिए।

परस्पर विरोधी तर्क-पद्धतियों का निष्कर्ष के धरातल पर यह सामंजस्य अद्भुत है। धर्मेतर अध्यात्म की सम्भावनाओं पर विचार का प्रस्ताव, जो यह पुस्तक आपको देती है, विरुद्धों के इस सामंजस्य से टकराने का, और हो सके तो इसके परे जाने का प्रस्ताव है।

पिछले एक साल से भी ज़्यादा समय से दैनिक ‘जनसत्ता’ में चिन्‍तक-आलोचक
डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल का चर्चित कॉलम ‘मुखामुखम’ एक समग्रबोध की साधना करने की भरसक कोशिश करता रहा है। सैद्धान्तिक प्रश्नों से जूझने से लेकर अटलांटा, वर्धा और गोपेश्वर के अनुभव-संवेदनों को पाठकों के सामने प्रस्तुत करने तक के रूप में ये लेख लगातार उत्सुकता के साथ पढ़े गए। जाने-माने बुद्धिजीवियों से लेकर पाठकों तक सभी ने इनमें विशेष दिलचस्पी ज़ाहिर की। बहसें भी हुईं। शुरुआती एक वर्ष (मई 2003-मई 2004) में प्रकाशित चर्चित लेख यहाँ पुस्तक रूप में प्रस्तुत हैं। लेखक ने इनमें वे आवश्यक पाद-टिप्पणियाँ और सन्‍दर्भोल्लेख भी जोड़ दिए हैं, जो अख़बार में नहीं आ सकते थे, लेकिन ज़रूरी थे।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2020, Ed 2nd
Pages 132p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Purushottam Agarwal

Author: Purushottam Agarwal

पुरुषोत्तम अग्रवाल

जन्‍म : 25 अगस्‍त, 1955

पुरुषोत्तम अग्रवाल ने जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय से 'कबीर की भक्ति का सामाजिक अर्थ’ विषय पर पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की और रामजस कॉलेज, दिल्ली तथा जेएनयू में अध्यापन कार्य किया।

प्रकाशित कृतियाँ हैं : 'संस्कृति : वर्चस्व और प्रतिरोध’, 'तीसरा रुख’, 'विचार का अनन्‍त’, 'शिवदानसिंह चौहान’, 'निज ब्रह्म विचार’, 'कबीर : साखी और सबद’, 'हिन्दी सराय : अस्त्राखान वाया येरेवान’ तथा 'पद्मावत : एन एपिक लव स्टोरी’ (अंग्रेज़ी में)।

उनकी पुस्तक 'अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ भक्ति-सम्बन्धी विमर्श में अनिवार्य ग्रन्थ का दर्जा हासिल कर चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में प्रकाशित कहानियाँ जीवन्त और विचारोत्तेजक चर्चा के केन्द्र में रही हैं, जिनमें शामिल हैं, 'चेंग-चुई’, 'चौराहे पर पुतला’, 'पैरघंटी’, 'पान पत्ते की गोठ’ और 'उदासी का कोना’। 'नाकोहस’ उनका पहला और अत्यन्त चर्चित उपन्यास है।

भक्ति-संवेदना, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक इतिहास से सम्बद्ध समस्याओं पर आयोजित गोष्ठियों और भाषणमालाओं के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, फ़्रांस, आयरलैंड, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की यात्राएँ कीं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और कॉलेज ऑफ़ मेक्सिको में विजिटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे।

आलोचना पुस्तक 'तीसरा रुख’ के लिए 1996 में ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’, 'संस्कृति : वर्चस्व और प्रतिरोध’ के लिए 1997 में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् के ‘मुकुटधर पाण्डेय सम्मान’ तथा 'अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ के लिए 2001 में राजकमल प्रकाशन के प्रथम ‘राजकमल कृति सम्मान—कबीर, हजारीप्रसाद द्विवेदी पुरस्कार’ से सम्मानित।

राजकमल प्रकाशन की 'भक्ति शृंखला’ के सम्पादक हैं। इसके तहत अभी तक डेविड लोरेंजन की पुस्तक 'निर्गुण संतों के स्वप्न’, जॉन स्टैटन हॉली की 'भक्ति के तीन स्वर’ और डॉ. रमण सिन्हा की पुस्तक 'रामचरितमानस : पाठ : लीला : चित्र : संगीत’ का विस्तृत भूमिकाओं के साथ सम्पादन कर चुके हैं।

एनसीईआरटी की हिन्दी पाठ्य-पुस्तक समिति के मुख्य सलाहकार, भारतीय भाषा केन्द्र, जेएनयू के अध्यक्ष तथा संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं।

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