Padmavat : Manush Pem Bhaeu Bainkunthi

Translator: Paritosh Malviya
Edition: 2022, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Padmavat : Manush Pem Bhaeu Bainkunthi
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एक थी रानी ‌प‌द्म‌िनी जिसे लोक-मन की कल्पनाओं ने गढ़ा और इतिहास में स्थापित कर दिया। राजपूताना के सम्मान और शान के रूप में लोग उसकी कथा कहते-सुनते रहे। एक थी ‘पद्मावत’ जिसे मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी में लिखा, और जिसमें उन्होंने स्त्री, प्रकृति और प्रेम के सौन्दर्य की एक अमर छवि गढ़ी। छात्र उसके अंशों को पाठ्यक्रम में पढ़ते और कोर्स में लगी हर सामग्री की तरह रट-रट कर भूल जाते।

फिर एक फ़िल्म बनी, जिससे पता चला कि लोग न पद्म‌िनी को जानते हैं, न ‘पद्मावत’ को;  कि वे एक मिथक को सच की तरह पढ़ रहे हैं और जो चीज़ वास्तव में पढ़ने योग्य है, उसे पढ़ ही नहीं रहे।

इसलिए यह किताब। नवोन्मेषकारी विचार और सृजनात्मक आलोचकीय मेधा के धनी प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल अपनी इस किताब में 'पद्मावत' को भारत के आरम्भिक आधुनिक काल की रचना कहते हैं जिसके केन्द्र में एक स्त्री है, एक ऐसा काव्य जिसमें चरित्रों का मूल्यांकन उनके व्यक्तिगत कार्यों और गुणों के अनुसार होता है, उनकी धार्मिक, जातिगत या सामाजिक पहचान से नहीं। यह एक प्रेम कविता है। श्रेष्ठ कविता जो स्त्रीत्व का जश्न मनाती है और शृंगार रस जिसका महत्त्वपूर्ण अंग है। ‘पद्मावत’ और उसकी इस मीमांसा से हम जान पाते हैं कि जायसी की संवेदना में इस्लामी परम्परा के ज्ञान और सूफ़ी आस्था के साथ-साथ हिन्दू पुराण कथाओं, मान्यताओं और अवध के लोकजीवन की गहरी जानकारी और लगाव एक साथ अनुस्यूत है।

पुरुषोत्तम जी खुद इस किताब को ‘जायसी की कविता के नशे में बरसों से डूबे एक पाठक द्वारा’ अपनी एक प्रिय रचना का पाठ कहते हैं जो स्पष्ट है, सिर्फ़ आलोचना नहीं है, भारत की अपनी, उपनिवेश-पूर्व, आधुनिकता की सौन्दर्य-चेतना और काव्यबोध से सम्पन्न एक क्लासिक कृति का रचनात्मक अवगाहन है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 216p
Translator Paritosh Malviya
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1.5
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Purushottam Agarwal

Author: Purushottam Agarwal

पुरुषोत्तम अग्रवाल

जन्‍म : 25 अगस्‍त, 1955

पुरुषोत्तम अग्रवाल ने जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय से 'कबीर की भक्ति का सामाजिक अर्थ’ विषय पर पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की और रामजस कॉलेज, दिल्ली तथा जेएनयू में अध्यापन कार्य किया।

प्रकाशित कृतियाँ हैं : 'संस्कृति : वर्चस्व और प्रतिरोध’, 'तीसरा रुख’, 'विचार का अनन्‍त’, 'शिवदानसिंह चौहान’, 'निज ब्रह्म विचार’, 'कबीर : साखी और सबद’, 'हिन्दी सराय : अस्त्राखान वाया येरेवान’ तथा 'पद्मावत : एन एपिक लव स्टोरी’ (अंग्रेज़ी में)।

उनकी पुस्तक 'अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ भक्ति-सम्बन्धी विमर्श में अनिवार्य ग्रन्थ का दर्जा हासिल कर चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में प्रकाशित कहानियाँ जीवन्त और विचारोत्तेजक चर्चा के केन्द्र में रही हैं, जिनमें शामिल हैं, 'चेंग-चुई’, 'चौराहे पर पुतला’, 'पैरघंटी’, 'पान पत्ते की गोठ’ और 'उदासी का कोना’। 'नाकोहस’ उनका पहला और अत्यन्त चर्चित उपन्यास है।

भक्ति-संवेदना, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक इतिहास से सम्बद्ध समस्याओं पर आयोजित गोष्ठियों और भाषणमालाओं के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, फ़्रांस, आयरलैंड, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की यात्राएँ कीं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और कॉलेज ऑफ़ मेक्सिको में विजिटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे।

आलोचना पुस्तक 'तीसरा रुख’ के लिए 1996 में ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’, 'संस्कृति : वर्चस्व और प्रतिरोध’ के लिए 1997 में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् के ‘मुकुटधर पाण्डेय सम्मान’ तथा 'अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ के लिए 2001 में राजकमल प्रकाशन के प्रथम ‘राजकमल कृति सम्मान—कबीर, हजारीप्रसाद द्विवेदी पुरस्कार’ से सम्मानित।

राजकमल प्रकाशन की 'भक्ति शृंखला’ के सम्पादक हैं। इसके तहत अभी तक डेविड लोरेंजन की पुस्तक 'निर्गुण संतों के स्वप्न’, जॉन स्टैटन हॉली की 'भक्ति के तीन स्वर’ और डॉ. रमण सिन्हा की पुस्तक 'रामचरितमानस : पाठ : लीला : चित्र : संगीत’ का विस्तृत भूमिकाओं के साथ सम्पादन कर चुके हैं।

एनसीईआरटी की हिन्दी पाठ्य-पुस्तक समिति के मुख्य सलाहकार, भारतीय भाषा केन्द्र, जेएनयू के अध्यक्ष तथा संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं।

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