अशोक वाजपेयी की कविताओं से गुज़रते हुए यह एहसास बहुत शिद्दत से होता है कि हम ऐसे कवि से मुख़ातिब हैं जिसके यहाँ लौकिक और लोकोत्तर संवादरत हैं जिसके पास समकालीन यथार्थ की विकरालता को समझने की क्षमता ही नहीं, इस यथार्थ के समानान्तर जीवनपरक सम्भावनाएँ देखने और उनका उत्सव मनाने की भी क्षमता है जो कविता को किसी भी विचार का उपनिवेश बनाने के प्रयत्नों का सतत मुखर प्रतिवादी स्वर बनकर बहुत प्रसन्न है, और इन प्रयत्नों को विचार मात्र से विमुखता का पर्याय मान लिए जाने से बहुत उदास। जिसका मानना है कि कविता की प्रामाणिकता किसी विचार-विशेष का अनुगमन करने में नहीं, मानवीय वेदना और संवेदना को मुखरित करने में है। वैसे ही जैसे नारद भक्ति-सूत्रों का रचयिता मानता है कि भक्ति को कहीं बाहर से सर्टीफ़िकेट हासिल करने की ज़रूरत नहीं, यह स्वयं ही प्रमाण है : ‘प्रमाणान्तरस्यानपेक्षात्वात् स्वयं प्रमाणत्वात’!
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2012 |
Edition Year | 2012, Ed. 1st |
Pages | 184p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21 X 17 X 1.5 |