घूमते-घूमते इस नौजवान बहादुर के कान में एक दर्दनाक रोने की आवाज आई जिसे सुनते ही वह चौंक उठा और इधर-उधर ध्यान लगा कर देखने लगा, मगर फिर वह आवाज न सुन पड़ी।
वह दर्दनाक आवाज ऐसी न थी कि जिसे सुनकर कोई भी अपने दिल को सम्हाल सकता। हमारा नौजवान बहादुर तो एक दम परेशान हो गया, क्योंकि यह जितना दिलेर और ताकतवर था उतना ही नेक ओ रहमदिल भी था। आवाज कान में पड़ते ही मालूम हो गया था कि यह किसी कमसिन औरत की आवाज है जिस पर कोई जुल्म हो रहा है। इससे आखिर न रहा गया और यह उसी आवाज की सीध पर पश्चिम की तरफ चल निकला। थोड़ी ही दूर जाने पर फिर वैसी ही दर्दनाक आवाज इस बहादुर के बाईं तरफ से आई जिसे सुन यह बाईं तरफ को मुड़ा और थोड़ी ही देर में उस जगह जा पहुँचा जहाँ से वह पत्थर जैसे कलेजे को भी गलाकर बहा देने वाली आवाज आ रही थी।
लोमहर्षक दृश्यों और कहानियों के रचेता देवकीनन्दन खत्री के इस उपन्यास ‘नरेन्द्र-मोहिनी’ के केन्द्र में एक प्रेम-कथा है। कहानी बिहार के दो राजघरानों से सम्बन्ध रखती है। उनकी संतानों में एक नरेन्द्र रंभा से विवाह न करके घर से भाग जाता है और मोहिनी से प्रेम करने लगता है। लेकिन प्रेम की अप्रत्याशित स्थितियाँ उसके सामने आती रहती हैं। मोहिनी की दो बहनें हैं केतकी और गुलाब। इसी केतकी के घर नरेन्द्र की भेंट पुन: रंभा से होती है... टेढ़ी-मेढ़ी राहों से चलती हुई यह प्रेमकथा हमें देवकीनन्दन खत्री के तिलिस्मी उपन्यासों की भी याद दिलाती है, और एक नए परिवेश से भी परिचित कराती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 183p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan - Remadhav |
Dimensions | 20.5 X 13.5 X 1.5 |