Matrichhabi-Paper Back

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ISBN:9788180319655
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‘माँ’ सिर्फ़ एक सम्बन्धवाचक शब्द नहीं, बल्कि बरगद की वृक्ष की तरह इसकी विशालता है। जिसकी असंख्य जड़ें हैं, जो ज़मीन में मज़बूती से पैठकर अपने हर छोटे तने को पेड़ बनते देखती है। महाश्वेता देवी की ‘मातृछवि’ में माँ रूपी बरगद के अनेक तने हैं जिनमें उसके भिन्न-भिन्न रूप दिखाई देते हैं। इसमें कौशल्या है जो अपनी ज़मीन के लिए, अपने अधिकार के लिए हसुआ लेकर अकेले पूरे गाँव का नेतृत्व करती है और अपनी ज़िन्दगी न्योछावर कर देती है। वहीं जाह्नवी माँ हैं, जिन्हें जीते-जी देवी अवतार का रूप बताकर उनके पोते उनकी कमाई खाते रहते हैं और असल में उन्हें एक कोठी में बन्द कर खाने के लिए भी तरसाते हैं। ‘मातृछवि’ सिर्फ़ माँ के भिन्न रूपों को नहीं गढ़ती, बल्कि आज़ादी के बाद के बंगाल की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परतों को भी उधेड़ती है। परतों के खुलते ही जहाँ नक्सलबाड़ी आन्दोलन की रक्तरंजित भूमि दिखाई देती है तो वहीं समाजवाद के निर्माण के नाम पर यमुनावती की माँ और उसके जैसे तमाम लोग, जो अपने को फालतू और अनावश्यक समझने पर मजबूर किए जाते हैं। वहीं अपनी इज़्ज़त को बचाए रखने और अपने बच्चे को भरपेट चावल खिलाने के लिए जटी को सुबह-शाम की माँ बनना पड़ता है। और दिन देवी बनकर गुज़ारना पड़ता है।

महाश्वेता देवी की कहानियों में भले ही औरत का मातृ रूप आज से पचास साल पहले का ही क्यों न हो, लेकिन इसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी तब रही होगी।

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Language English
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 2nd
Pages 182p
Price ₹125.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Mahashweta Devi

Author: Mahashweta Devi

महाश्वेता देवी

जन्म : 1926; ढाका।

पिता श्री मनीष घटक सुप्रसिद्ध लेखक थे।

शिक्षा : प्रारम्भिक पढ़ाई शान्तिनिकेतन में, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.।

अर्से तक अंग्रेज़ी का अध्यापन।

कृतियाँ अनेक भाषाओं में अनूदित।

हिन्दी में अनूदित कृतियाँ : ‘चोट्टि मुण्डा और उसका तीर’, ‘जंगल के दावेदार’, ‘अग्निगर्भ’, ‘अक्लांत कौरव’, ‘1084वें की माँ’, ‘श्री श्रीगणेश महिमा’, ‘टेरोडैक्टिल’, ‘दौलति’, ‘ग्राम बांग्ला’, ‘शाल-गिरह की पुकार पर’, ‘भूख’, ‘झाँसी की रानी’, ‘आंधारमानिक’, ‘उन्तीसवीं धारा का आरोपी’, ‘मातृछवि’, ‘सच-झूठ’, ‘अमृत संचय’, ‘जली थी अग्निशिखा’, ‘भटकाव’, ‘नीलछवि’, ‘कवि वन्द्यघटी गाईं का जीवन और मृत्यु’, ‘बनिया-बहू’, ‘नटी’ (उपन्यास); ‘पचास कहानियाँ’, ‘कृष्ण द्वादशी’, ‘घहराती घटाएँ’, ‘ईंट के ऊपर ईंट’, ‘मूर्ति’ (कहानी-संग्रह); ‘भारत में बँधुआ मज़दूर’ (विमर्श)।

सम्मान : ‘जंगल के दावेदार’ पुस्तक पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘मैगसेसे अवार्ड’ तथा ‘ज्ञानपीठ  पुरस्कार’ से सम्मानित।

निधन : 28 जुलाई, 2016 (कोलकाता)।

 

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