‘बनिया-बहू’ की कथा 16वीं शताब्दी के एक आख्यान पर आधारित है, जिसे तत्कालीन कवि मुकुंदराम चक्रवर्ती ने अपनी कृति ‘चंडीमंगल’ में लिपिबद्ध किया था। महाश्वेता देवी ने यह आख्यान इसी पुस्तक से उठाया है और उसे एक अत्यन्त मार्मिक उपन्यास में ढाला है।
महाश्वेता जी का मानना है : “बनिया-बहू सम्भवतः आज भी प्रासंगिक है। क़ानून को धता बताकर आज भी बहुविवाह प्रचलित है।...और ‘बेटे की माँ’ न हो सकने की स्थिति में आज भी स्त्रियाँ ख़ुद को अपराधी मानती हैं...अर्थात् अभी भी हम बीसवीं शताब्दी तथा अन्य बीती शताब्दियों में एक साथ रह रहे हैं।”
—भूमिका से
‘बनिया-बहू’ बहुविवाह प्रथा की इसी चिराचरित त्रासदी की कहानी है। एक स्त्री के बाँझपन के हाहाकार के साथ उसके द्वारा एक दूसरी अत्यन्त कोमल, कमनीय तथा सरल बालिका पर किए गए अकथ अत्याचार से नष्ट होते पारिवारिक जीवन और सुख-शान्ति का मर्मस्पर्शी आख्यान है यह उपन्यास। अन्ततः दोनों ही स्त्रियाँ सामाजिक कुरीतियों, अन्धविश्वासों के मकड़जाल में फँसकर दम तोड़ देती हैं, जबकि उनका कोई दोष नहीं।
लेखिका ने दोनों स्त्रियों के साथ पूरी सहानुभूति के साथ, तन्मय होकर, उन स्थितियों का विश्लेषण तथा उद्घाटन किया है, जिनमें एक भयानक सामाजिक विनाश के बीज निहित हैं। एक सिद्धहस्त कथा लेखिका की क़लम से निकली एक अनुपम औपन्यासिक कृति।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Maheshwar |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2000 |
Edition Year | 2022, Ed. 4th |
Pages | 131p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |